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माँ लक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति पर हो जाए उसके सभी दुःख समाप्त हो जाते है

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                                                     माँ लक्ष्मी जी को सूख और समृद्दी की देवी माना गया  है माँ लक्ष्मी की कृपा जिस व्यक्ति पर हो जाये, उसके सभी दुःख समाप्त हो जाते है l संसार में सूख-संपदा की प्राप्ति के लिए मनुष्य,राक्षस,देवता आदि माँ लक्ष्मी की उपासना करते है l माँ लक्ष्मी साक्षात धन वैभव की देवी है l माँ लक्ष्मी के आगे समस्त देवता, दानव ,एवं मनुष्य शीश झुकाते है और माँ लक्ष्मी से कृपा-दृष्टि बनाए रखने की   पार्थना करते है   माता लक्ष्मी की महिमा संपूर्ण जगत में फैली हुई है दीपावली के अवसर पर महालक्ष्मी का भगवान श्रीगणेश के साथ विशेष पूजा किया जाता है पूजन के लिए किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर श्री गणेश जी के दाहिने भाग में माँ लक्ष्मी की स्थापना करनी चाहिए पूजा का स्थान स्वच्छ और साफ   होना चाहिए और स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्दा भाव से माँ लक्ष्मी की पूजन करना चाहिए माँ लक्ष्मी का पूजन मधु,घृत,दुग्ध,दही,इत्र,लाल चंदन सिन्धुर,कुमकुम,चावल,दूर्वा,धुप,दीप,नैवेद,पुष्प,फल,पान,सोपारी आदि से किया जाता है वैसे माँ लक्ष्मी का पूजन समर्पण भाव से भी किया जा सकता ह

करवा चौथ व्रत कथा--नाग छोटी बहु को लेकर कहाँ गये--करवा चौथ कब है

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  करवा चौथ व्रत कथा- नाग छोटी बहु को लेकरके कहाँ गया करवा चौथ कब है एक ब्राम्हण परिवार में सात बहुएँ थी 6 बहुओ के मायके वाले बहुत   अमीर थे इस लिए उन बहुओं को ससुराल में बहुत मान सम्मान मिलता था छोटी बहु के मायके में कोई नहीं था छोटी बहु घर का सारा काम काज करती और सबकी सेवा करती इतना सब करने के बाद भी छोटी बहु से कोई प्यार नहीं करता था तीज त्यौहार पर छोटी बहु के मायके से जब कोई नहीं आता तो वह बहुत दुखी होती हर साल की तरह इस साल भी करवा चौथ का व्रत आया 6 बड़ी बहुओं के मायके से उनके भाई करवा ले कर आए छोटी बहु के मायके में कोई था ही नहीं तो करवा कौन लाता सास छोटी बहु को खरी खोटी सुना रहीं थी छोटी बहु दुखी होकर घर से निकल पड़ी और जंगल में जाकर रोने लगी एक नाग बहुत देर से छोटी बहु का रोना सुनता रहा और अंत में वह नाग अपने बिल से बाहर निकल आया नाग छोटी बहु के पास जाकर बोला बेटी तुम रो क्यों रहीं हो छोटी बहु नाग से बोली आज करवा चौथ है मेरा कोई भाई नहीं है आज अगर मेरा भाई होता तो करवा जरुर लेकर आता नाग को छोटी बहु पर दया आई नाग छोटी बहु से बोला बेटी तुम घर चलो मै अभी करवा लेकर आता हूँ

शारदीय नवरात्रि हिंदू पंचांग के अनुसार अक्टूबर२०२४ में कब से शुरू हो रही है

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  माँ दुर्गा नवरात्रि     में इस बार डोली पर सवार होकर धरती पर आयेगीं वर्ष में दो बार माँ दुर्गा के नौ रूपों की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है नवरात्रि में नौ दिन माँ दुर्गा के नव स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है जिसे नवदुर्गा-पूजन और नवरात्र-पूजन आदि कहा जाता है माँ भगवती दुर्गा की पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है माँ दुर्गा के अनंत रूप है भक्त माँ दुर्गा के सभी रूपों की पूजा अर्चना करके   इनके कृपा के पात्र बनते है   देश भर में नवदुर्गा-पूजन उल्लास और भक्ति-भाव से मनाया जाता है नवरात्रि में नौ दिनों में माँ दुर्गा के विभिन्न नौ शक्तिरूपों की पूजा अर्चना की जाती है ये नौ विभिन्न रूप माँ दुर्गा के साक्षात शक्ति रूप है, जो भक्तो की सभी मनोकामनायें पूर्ण कर उन्हें लोक-परलोक में मान-सम्मान दिलवाते है माता दुर्गा के नौ शक्ति रूप शैलपुत्री नवदुर्गाओं में माता शैलपुत्री प्रथ म दुर्गा मानी जाती है इनकी पूजा नवरात्रि में पहले दिन की जाती है   ब्रम्हाचारिणी नवदुर्गा का दूसरा स्वरूप माता ब्रम्हाचरणीय के रूप में विख्यात है इनकी पूजा नवरात्रि में दुसरे दिन की जाती है चंद्रघंटा नवदुर्गा का त

रक्षा बंधन पर शुभ-लाभ अपनी बहन संतोषी को भेंट में क्या दिए

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श्री गणेश पुत्र शुभ-लाभ अपनी माता से बोले रक्षा बंधन का क्या महत्व है माता एक बार रक्षाबन्धन के पावन अवसर पर भगवान श्री गणेश की बहन गणेशलोक में आई| उनके आने की खुशी में गणेशलोक में मंगल गीत गाए गए चारों ओर हर्ष और उल्लास का वातावरण था| श्री गणेश के दोनों पुत्र,‘शुभ और लाभ’ इस उत्सव को बड़ी एकाग्रता से देख रहें थे| शुभ, लाभ के मन में अनेक प्रकार के विचार उठ रहें थे, जिनका वे समाधान प्राप्त करना चाहते थे| शुभ,लाभ अपनी माता रिद्दी,सिद्दी के पास गये और बोले हे माता हमारे यहाँ किस उत्सव की तैयारियाँ की जा रहीं हैं? किसी भी उत्सव पर इतना वैभव और ऐश्वर्य देखने को नहीं मिलता| इसका क्या कारण है? हे माता कृपा करके हमें बतायें देवी रिद्दी सिद्दी बोली’ हे, पुत्रों यह पर्व भाई बहन के बंधन को मजबूती प्रदान करने वाला त्यौहार है अपने पुत्रों की बात सुनकर देवी रिद्दी-सिद्दी बोली, ‘हे पुत्रों आज रक्षाबंधन का पर्व हैं और ये सब व्यवस्था उसी पर्व के लिए की जा रहीं हैं| अपनी माता की बात सुनकर शुभ और लाभ बोले ‘हे माता रक्षाबंधन का क्या महत्व है? क्या यह भौतिकता को प्रदर्शित करने वाला पर्व है? देवी रिद

महर्षि दुर्वासा के ललाट से भष्म के गिरने से कुंभीपाक नरक स्वर्ग कैसे हो गया

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महर्षि दुर्वासा कुंड की ओर निचा सिर करके देख रहे थे उनके ललाट से भष्म के कुछ कण कुंड में गिर पड़े थे महर्षि दुर्वासा के क्रोध से देव दानव दोनों डरते है| दुर्वासा ऋषि के शाप से सभी भयभीत रहते है इनका क्रोध भी प्राणियों के लिए कल्याणकारी ही हुआ है| दुर्वासा ऋषि ने जिन-जिन को शाप दिया उनका भला ही हुआ।ये शिव के रुद्रावतार थे।दुर्वासा ऋषि भगवान शंकर के अंश से उत्पन्न हुए थे वे जहाँ कहीं जाते,थे लोग देवता की तरह उनका आदर   करते थे| दुर्वासा ऋषि अत्री मुनि और अनुसूया के पुत्र है। महर्षि दुर्वासा भगवान शंकर के बहुत बड़े भक्त है| एक बार ऋषि समस्त भूमंडल का भ्रमण करते हुए पितृलोक में जा पहुचें | वे सर्वांग में भष्म रमाये एवं रुद्राक्ष धारण किये हुए और हाँथ में कमंडल और त्रिशूल लिए हुए और हृदय में भगवती पार्वती का ध्यान और मुख से जय पार्वती का उच्चारण करते हुए महर्षि दुर्वासा ने अपने पितरों का दर्शन किया| उसी समय ऋषि के कानो में करुण-रुदन सुनाई पड़ा, हाहाकारमय भीषण रोने की आवाज को सुन कर ऋषि कुंभीपाक नरक को देखने के लिए चल दिए। वहाँ पहुँच कर ऋषि वहाँ के कर्मचारियों से पूछे रक्षको, यह करुण रोने क

भगवान शंकर की माया neelam.info

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  शिशु के श्वाँस से खींचे हुए मार्कण्डेय ऋषि शिशु के नाशिका के छिद्र से शिशु के उदर में चले गये मार्कण्डेय ऋषि के तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रगट होकर बोले पुत्र वरदान मांगों    मार्कण्डेय जी निवेदन करके बोले हे प्रभो आपके श्री चरणों का दर्शन हो जाय, आपको पा लेने पर फिर तो पाना शेष रह ही नहीं जाता,  प्रभु मुझे आपकी माया देखनी है भगवान शिव एवमस्त कहकर अंतर्ध्यान हो गये मार्कण्डेय ऋषि शिवजी की आराधना ध्यान तथा पूजन में लग गये एक दिन ऋषि ने देखा दिशाओं को काले-काले मेघों ने ढक लिया है बड़ी भयंकर गर्जना, बिजली की कड़क के साथ मुसल के समान मोटी-मोटी धाराओं से पानी बरसने लगा| इतने में ही चारों ओर से समुद्र बढ़ आए और समस्त पृथ्वी प्रलय के जल में डूब गयी, ऋषि उस महासागर में विक्षिप्त की भाँती तैरने लगे, भूमि वृक्ष, पर्वत आदि सब डूब चुके थे, सूर्य, चंद्रमा,तारो का भी कहीं   पता नहीं था| सब ओर घोर अंधकार था, समुद्र की बड़ी-बड़ी भयंकर तरगें कभी ऋषि को यहाँ से वहाँ फेक देती थीं कभी कोई जल-जन्तु उन्हें काटने लगता था और कभी वे जल में डूबने लगते थे, जटाएँ खुल गयी थी, बुद्दि विक्षिप्त हो गयी