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तुलसी की पूजा क्यों करते हैं

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प्राचीन काल की बात है। पृथ्वी पर राजा धर्मध्वज का शासन था। पौराणिक कथाओं के अनुसार राजा धर्मध्वज देवी लक्ष्मी को पुत्री रूप में पाने के लिए तपस्या कर रहे थे। देवी लक्ष्मी राजा की तपस्या से प्रसन्न होकर राजा धर्मध्वज के यहां पुत्री रूप में जन्म लीया। महालक्ष्मी की कृपा से कार्तिक की पूर्णिमा के दिन माधवी के गर्भ से एक सुंदर और दिव्य कन्या उत्पन्न हुई। उस समय शुभ दिन, शुभ योग, शुभ लग्न और शुभ ग्रह का योग चल रहा था। उस कन्या का वर्ण श्याम था। उस कन्या की दिव्य कांति से सारा महल प्रकाशमान हो रहा था। उसके दिव्य मनोहारी रूप की तुलना असंभव थी, इसलिए विद्वानों ने उसका नाम तुलसी रखा। जन्म लेते ही तुलसी बड़ी हो गई। तपस्या करने के लिए तुलसी बद्रिकावन में चली गई। श्री विष्णु मेरे स्वामी हो। यही विचार करके उसने कठोर तपस्या की तुलसी की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी प्रगट हुए। तुलसी ब्रह्माजी को प्रणाम कर के बोली हे प्रभु आप तो अंतर्यामी हैं। हे प्रभु मै पूर्व जन्म में भगवान श्रीकृष्ण की प्रिया, सेविका और प्रेयसी थी। एक बार मैं प्रभु श्रीकृष्ण के साथ हास परिहास कर रही थीं तभी अचानक रास की अधिष्ठात...

शारदीय नवरात्रि कब से शुरू हो रही हैं इस साल 2025 में

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शारदीय नवरात्रि शुरू हो रही हैं 22 सितंबर सोमवार  शारदीय नवरात्रि कब से शुरू हो रही हैं इस साल आइए जानते हैं की शारदीय नवरात्रि इस साल कब मनाई जाएगी 2025 में  शारदीय नवरात्रि 2025, इस साल कब से शुरू हो रही हैं। कलश स्थापना का शुभ मुहुर्त नवरात्रि 2025, की तिथियां हिंदू पंचाग के अनुसार अश्वनी माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ होता हैं। यह त्योहार हिंदू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता हैं। और हर साल पूरे देश में हर्षोल्लास और बड़े ही उत्साह के साथ नवरात्रि मनाया जाता हैं।  सभी भक्तजन नवरात्रि बड़े उत्साह और भक्तिभाव से मनाते हैं। हर साल नवरात्रि में नव दिनों तक भक्त मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना करते हैं। और सच्चे मन से पूरे विधि विधान से भक्तजन  व्रत रखते है। कब है शारदीय नवरात्रि 2025,में  शारदीय नवरात्रि का शुभारंभ 22 सितंबर 2025 से हो रहा हैं  इस साल शारदीय नवरात्रि का शुरुआत 22, सितंबर से हो रहा है और समापन 2 अक्टूबर को होगा  नवरात्रि की शुरुआत कलश स्थापना के साथ होगी और इसका समापन 2 अक्टूबर 2025, को होगा।...

भगवान विष्णु मोहिनी अवतार क्यों लिए

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भगवान विष्णु मोहिनी अवतार क्यों लिए  भगवान विष्णु मोहिनी अवतार क्यों लिए  देवराज इंद्र ने महर्षि दुर्वासा की दी हुई दिव्य पुष्प माला को अपने हाथी के मस्तक पर रख दिया। हाथी ने उस दिव्य पुष्प माला को भूमि पर गिराकर अपने पैरों तले कुचल दिया। यह देख कर महर्षि दुर्वासा क्रोधित होकर इंद्र को शाप दे दिया कि शीघ्र ही त्रिभुवन तेज़हीन हो जाएगा और देवगण शक्तिहीन एवं श्रीहीन हो जाएंगे  देवता दानवों से पराजित हो गए दैत्यों ने देवताओं से स्वर्ग छीन लिया दैत्यों ने इंद्रासन पर अधिकार कर लिया चारों तरफ दैत्यों का अधिकार हो गया  सभी देवता विष्णु के पास पहुंचे और दुर्वासा ऋषि के शाप से मुक्ति पाने का उपाय पूछने लगें  श्री विष्णु बोले पुनः श्रीयुक्त होने के लिए आप लोगों को अमृत पान करना होगा  अमृत समुद्र के गर्भ में मिलेगा, जिसकी प्राप्ति के लिए समुद्र मंथन आवश्यक है। भगवान विष्णु की बात सुनकर इंद्र आदि देवता समुद्र मंथन के लिए तैयार हो गए श्रीविष्णु देवताओं से बोले जब तक दैत्य साथ नहीं देंगें तब तक समुद्र मंथन नहीं हो सकता इंद्र बोले हे नारायण दैत्य समुद्र मंथन में हमारा सा...

राहु अपनी छाया से सूर्य और चन्द्र को क्यों ढक लिया

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भगवान विष्णु ने जब अपने सुदर्शन चक्र से राहु का मस्तक काटा, तब राहु का मस्तक तो वहीं रह गया, लेकिन उसका धड़ गौतमी नदी के तट पर जाकर गिरा। अमृतपान के कारण राहु और केतु दोनों ही अमर हो गए। सभी देवता यह जान के भयभीत हो गए की राहु केतु अमर हो गए  इंद्र और आदि देवता घबराएं हुऐ भगवान शंकर के शरण में गए  सभी देवता शिवजी से बोले हे महादेव दैत्य राहु ने आसुरी माया से देवता का रूप धारण करके अमृतपान कर लिया है। भगवान विष्णु भी उसे समाप्त करने में असफल रहे। हे प्रभु यदि अब उस दैत्य के हृदय में तीनों लोकों पर विजय करने का विचार उत्पन्न हो गया तो उसे कोई भी नहीं रोक सकेगा  हे प्रभु आप इसका कुछ उपाय करे और आने वाले संकट से हमारी रक्षा करे। हम सब आपकी शरण में हैं। भगवान शिव देवताओं से बोले सृष्टि के कल्याण के लिए उस दैत्य का विनाश आवश्यक है मैं शीघ्र ही उस दैत्य के संहार का कोई उपाय करता हूं। भगवान शिव ने अपने आंख बंद करके अपनी श्रेष्ठ शक्तियों का आवाहन किया। आवाहन करते ही शिवजी के तीसरे नेत्र से एक प्रकाश किरण निकलकर विभिन्न मानव आकार लेने लगी। भगवान शिव चंडिका से बोले "हे देवी मै अपनी ...

राहु एक छाया ग्रह हैं

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राहु केतु एक ही व्यक्ति के दो अलग अलग भाग हैं। विष्णुपुराण के अनुसार विष्णु जी ने अपने सुदर्शन चक्र से राहु के सिर को धड़ से अलग कर दिया, किंतु अमृत पीने के कारण राहु का सिर कटने के बाद भी जीवित रहा। राहु का सिर राहु और धड़ केतु कहलाया  राहु एक छाया ग्रह हैं। इसकी महादशा अठारह वर्ष की होती है। यह अशुभ प्रभाव देने वाला ग्रह हैं। इसकी शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का नियमित जाप करना चाहिए  राहु का वर्ण काला और मुख भयंकर है। इनके सिर पर स्वर्ण मुकुट, गले में स्वर्ण माला और शरीर पर काले वस्त्र सुशोभित होते है इनका प्रिय वाहन सिंह है। यह अपने हाथों में त्रिशूल,तलवार, ढाल और वर मुद्रा धारण करते हैं।  राहु के धड़ ने भी एक रूप धारण किया यह रूप केतु कहलाया। केतु का वर्ण धूम्र और आकृति विकृत है। राहु के समान इनके सिर पर भी स्वर्ण मुकुट और गले में स्वर्ण माला सुशोभित है। इनके दो हाथ हैं, जिनमें गदा और वरमुद्रा सुशोभित हैं। इनका वाहन गिद्ध है  राहु की अपेक्षा केतु साधकों के लिए अधिक लाभकारी, फलदाई और शुभ होता हैं। केतु की महादशा सात वर्ष की होती है। जिस व्यक्ति के लिए यह अशुभ ...

भगवान श्रीकृष्ण के जन्म लेने से पहले योगमाया ने क्या किया

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 पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग में कंस अपने पिता को कारागार में डाल दिया और खुद मथुरा का राजा बन गया कंस की एक चचेरी बहन देवकी थी जब कंस अपनी  नवविवाहिता बहन देवकी को और उनके पति वसुदेव को रथ में उनके घर ले जा रहा था, उसी समय उसने एक आकाशवाणी सुनी, जिसमें यह भविष्यवाणी की गई थी कि देवकी का आठवां पुत्र उसका संहार करेगा। क्रूर कंस ने तुरन्त ही देवकी को मारने के लिए अपनी तलवार निकाली,  वसुदेव कंस से बोले देवकी को मत मारिए देवकी जब पुत्र को जन्म देगी तो मैं तुरन्त उसके पुत्र को आपके पास ले आऊंगा कंस ने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया कंस ने देवकी के 6 पुत्रों को जन्म लेते ही मार दिया देवकी जब सातवीं बार गर्भवती हुई तब श्रीभागवन योगमाया से बोले देवकी और वसुदेव कंस के कारागार में बंदी हैं और इस समय मेरा पूर्ण अंश, शेष, देवकी के गर्भ में है। तुम शेष को देवकी के गर्भ से रोहणी के गर्भ में स्थानांतरित कर सकती हो उसके बाद मैं समस्त शक्तियों के सहित स्वयं देवकी के गर्भ में अवतरित होने जा रहा हूं फ़िर मैं देवकी और वसुदेव के पुत्र के रूप में प्रगट होऊंगा। तब तुम गोकुल में ...

कल्याणेश्वर महादेव का रहस्यमयी मन्दिर

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शिवलिंग पर जल अर्पित करते ही हो जाता गायब  कल्याणेश्वर महादेव मंदिर के चमत्कारी रहस्य !  कल्याणेश्वर महादेव का रहस्यमयी मन्दिर  कल्याणेश्वर महादेव मन्दिर के रहस्य और चमत्कार आज तक कोई नहीं समझ पाया दिल्ली से लगभग 90 किलोमीटर दूर बसा हैं। कल्याणेश्वर महादेव का रहस्यमयी मन्दिर  शिवलिंग पर जल अर्पित करते ही हो जाता हैं गायब  शिवलिंग पर अर्पित जल जाता कहा है। कहा गायब हो जाता हैं। आज तक कोई समझ नहीं पाया। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गढ़मुक्तेश्वर में  गंगा के तट पर तीन शिवलिंगों को भगवान परशुराम ने स्थापित किया था मुक्तेश्वर महादेव,झारखंडेश्वर महादेव, और कल्याणेश्वर महादेव।  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गढ़मुक्तेश्वर में ये सबसे प्राचीन मन्दिर हैं।  कल्याणपुर गांव में सांप इधर उधर दिखते रहते हैं, मन्दिर के आस पास भी दिखते रहते हैं। लेकिन वे कल्याणपुर गांव के लोगों को काटते नहीं अगर कभी किसी को सांप ने काट  लिया तो उनकी मृत्यु नहीं होती  कल्याणेश्वर महादेव मंदिर में भक्त जल दूध शिवलिंग पर अर्पित करते हैं तो जल भूमि में समा जाता हैं आज तक इस र...

रक्षाबंधन कब है 2025 में

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इस साल रक्षाबंधन 9 अगस्त को है 2025 में  रक्षाबंधन का त्यौहार देश भर में बड़े धूमधाम से मनाया जाता हैं। रक्षाबंधन भाई बहन के अटूट प्रेम और विश्वास का त्यौहार है। रक्षाबंधन के दिन बहन अपने भाई के कलाई में राखी बांधती हैं बहन अपने भाई के लिए लम्बी आयु और अच्छे भविष्य की कामना करती हैं भाई अपनी बहन को सदा उसकी रक्षा करने की बचन देता हैं। भाई बहन के अटूट प्रेम रक्षा और विश्वास के बंधन का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार देश भर में धूमधाम से मनाया जाता हैं रक्षाबंधन के पर्व पर भाई अपनी बहन से राखी बधवाता हैं और अपनी बहन को उपहार देता है। हिंदू पंचांग के अनुसार रक्षाबंधन का पर्व हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता हैं 9 अगस्त को रक्षाबंधन हैं राखी बांधने का शुभ मुहूर्त 9 अगस्त सुबह 5 बजकर 35 मिनट से दोपहर 1 बजकर 24 मिनट तक रहेगा । भद्राकाल में  राखी क्यों नहीं बांधते  भद्रा सूर्यदेव छाया की पुत्री और शनिदेव की बहन थीं भद्राकाल को अशुभ माना जाता हैं भद्रा को उग्र स्वभाव की देवी माना जाता हैं इस लिए भद्राकाल में राखी नहीं बांधते।  धर्मिक मान्यताओं के अनुसार श्री गणेश...

नाग पंचमी कब है 2025 में

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नाग पंचमी इस साल 29 जुलाई को मनाया जाएगा 2025 में  हिंदू धर्म में नाग पंचमी का विषेष महत्व है। हर साल यह त्योहार सावन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता हैं  नाग पंचमी के दिन नाग देवता और भगवान शंकर की विशेष पूजा की जाती हैं। नाग पंचमी के दिन सांपों को दूध फूल और मिठाई अर्पित किया जाता हैं  नाग पंचमी के दिन व्रत और पूजा भी की जाती हैं।  नाग पंचमी के दिन सांपों की पूजा करने से कुटुम्ब को सांपों के डर से मुक्ति मिलता हैं।  कहीं कहीं उस दिन पूजा करने के बाद पूरे घर में दूध लावा छिड़कते हैं  नाग पंचमी का त्यौहार इस साल 29 जुलाई मंगलवार 2025 को मनाया जाएगा  इस दिन कालसर्प दोष की शान्ति के लिए शिव पूजन करने का विशेष विधान है  नाग पंचमी के दिन गरीबों को अन्न वस्त्र और धन का दान देने से शुभ फल प्राप्त होता हैं लोकमान्यताओं के अनुसार  लोकमान्यताओं के अनुसार राजा परीक्षित की मृत्यु सांप के काटने से हुआ था राजा परीक्षित पुत्र जनमेजय ने सांपो को मारने के लिए यज्ञ करने लगे सांपो को बचाने के लिए मनसा देवी और ऋषि जरत्कारु के पुत्र आस्तिक ने जनमेजय से ...

सावन का पहला सोमवार कब है

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सावन का महीना शिवजी को क्यों प्रिय हैं  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तप किया था और सावन सोमवार का व्रत किया था, भगवान शंकर देवी पार्वती के तपस्या से प्रसन्न होकर देवी पार्वती को पत्नी रूप में  स्वीकार किया था तभी से सावन सोमवार का विशेष महत्व है। इस साल सावन मास की शुरुआत 11 जुलाई शुक्रवार 2025 में हो रहा हैं सावन का पहला सोमवार 14 जुलाई को पड़ेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन में श्रद्धा से की गई पूजा भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय होती हैं  भगवान शिव भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करते है सावन के पहले सोमवार को प्रथम श्रावणी सोमवार कहा जाता हैं हिंदू धर्म में सावन सोमवार का विशेष महत्व है शिव भक्त इस दिन उपवास रखते हैं, और पूरे विधि विधान से भगवान शंकर की पूजा करते हैं  शिवपुराण में कहा गया है कि सावन के महीने में शिवलिंग पर जल अर्पित करने से विशेष पुण्य मिलता है। यह महीना पूरी तरह से भगवान शिव की पूजा को समर्पित होता है ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में सच्चे मन से शिवजी की पूजा करने से दुखों का नाश होता है और जीवन में सु...

गौतम ऋषि अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बनने का शाप क्यों दिया

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गौतम ऋषि अपनी पत्नी अहिल्या के साथ आश्रम में रहते थे  ऋषि की  पत्नी अहिल्या बहुत सुंदर थी। गौतम ऋषि प्रतिदिन भोर में गंगा स्नान करने जाते थे  अहिल्या की सुंदरता को देखकर देवराज इंद्र अहिल्या पे मोहित हो गए  देवराज इंद्र ने अहिल्या के साथ छल किया  गौतम ऋषि जब भोर में गंगा स्नान के लिए गए  देवराज इंद्र उसी समय गौतम ऋषि का रूप धारण कर के अहिल्या के पास आए अहिल्या को लगा मेरे स्वामी आ गए हैं देवराज इंद्र ने अहिल्या के साथ छल किया  उसी समय गौतम ऋषि अपने आश्रम में आए  गौतम ऋषि क्रोध में इंद्र से बोले कौन हो तुम मुझे अपना असली रूप दिखाओ ऋषि बने इंद्र गौतम ऋषि के सामने देवराज इंद्र के रूप में प्रगट हुए  गौतम ऋषि ने देवराज इंद्र को शाप दिया जिस वासना के लिए तुमने ये पाप किया है आज से तू उसके योग्य नहीं रहेगा  अहिल्या ऋषि से बोली स्वामी मुझे क्षमा करें  इंद्र ने मेरे साथ छल किया इसमें मेरी कोई गलती नहीं है  गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी अहिल्या की एक भी बात नहीं सुनी गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बनने का शाप दे दिया  ऋषि पत्नी अह...

गरुण ने नागों को काट कर श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से छुड़ाया

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  विष्णुजी के वाहन हैं गरुण जी हिंदू मान्यताओं के अनुसार गरुण पक्षियों के राजा और भगवान विष्णु के वाहन हैं  गरुण कश्यप ऋषि और उनकी दूसरी पत्नी विनता की संतान हैं। कश्यप ऋषि से कद्दू ने एक हजार नाग-पुत्र और विनता ने केवल दो तेजस्वी पुत्र वरदान के रूप में मांगे।  वरदान के परिणामस्वरूप कद्दू ने एक हजार अंडे और विनता ने दो अंडे दिए। कद्दू के अंडों के फूटने पर उसे एक हजार नाग-पुत्र मिल गए। किन्तु विनता के अंडे उस समय तक नहीं फूटे।  उतावली होकर विनता ने एक अंडे को फोड़ डाला। उसमें से निकलने वाले बच्चे का ऊपरी अंग पूर्ण हो चुका था, किंतु नीचे का अंग नहीं बन पाये थे। उस बच्चे ने क्रोधित होकर अपनी माता को शाप दे दिया कि "माता तुमने कच्चे अंडे को तोड़ दिया है, इस लिए तुम्हें पांच सौ वर्षों तक अपनी सौत की दासी बन कर रहना होगा। ध्यान रहे दूसरे अंडे को अपने आप फूटने देना। उस अंडे से एक अत्यंत तेजस्वी बालक होगा और वही तुम्हें इस शाप से मुक्ति दिलाएगा  इतना कहकर अरुण नामक वह बालक आकाश में उड़ गया  और सूर्य के रथ का सारथि बन गया। एक दिन कद्दू और विनता की दृष्टि समुद्र मंथन...

छिन्नमस्ता देवी ने किसकी भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट दिया

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छिन्नमस्ता देवी को कटे सिरवाली देवी क्यों कहा जाता हैं भवानी छिन्नमस्ता दस विद्याओं में एक हैं। छिन्नमस्ता का शाब्दिक अर्थ हैं- कटे सिरवाली।  ये साहस, बुद्धि और विवेक प्रदान करने वाली देवी है। देवी छिन्नमस्ता को प्राय: वस्त्रहीन रति एवं काम के ऊपर खड़ा चित्रित किया जाता हैं। वे इंगित करती हैं कि काम पर विजय पाना जीवन का उद्देश्य बनाएं। जो व्यक्ति इनकी श्रद्धापूर्वक भक्ति करता है वह काम विजयी, धन्य-धान्य से सम्पन्न  और अनेक विद्याओं का जानकार हो जाता हैं यह भी कहा जाता कि इनके नियम में चूक होने पर ये भक्त को कड़ा दंड देती हैं। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार एक बार भवानी या पार्वती अपनी दो सखियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गई। स्नान के बाद तीनों को बड़ी जोर को भूख लगी। भूख के कारण भवानी मां का रंग काला पड़ गया। जया और विजया को भी भूख बर्दाश्त नहीं हुई। जया और विजया मां भवानी से भोजन की माँग की। भवानी ने प्रतीक्षा करने के लिए कहा। कुछ देर के बाद जया और विजया फिर भोजन की माँग की। देवी ने पुनः प्रतिक्षा करने को कहा लेकिन जया और विजया को भूख नहीं बर्दाश्त हुई और उन...

भगवान चित्रगुप्त प्रत्येक प्राणी के शरीर में गुप्त रूप से निवास करते है

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एक दिव्य शक्ति, जो अंतःकरण में चित्रित  एक दिव्य शक्ति जो अंत:करण में चित्रित चित्रों को पढ़ती है, उसी के अनुसार उस व्यक्ति के जीवन को नियमित करती है अच्छे - बुरे कर्मों का फल भोग प्रदान करती है, न्याय करती है।  उसी दिव्य देव शक्ति का नाम चित्रगुप्त है। चित्रगुप्त जी कायस्थों के जनक है। कायस्थों का स्रोत श्री चित्रगुप्त जी को माना जाता है। कहा जाता है कि जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की तो यमराज ने उनसे मानवों का विवरण रखने में सहायता मांगी।  यह सुन ब्रह्माजी ध्यान - साधना में लीन हो गए और जब उन्होंने आँखें खोली तो एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात, पुस्तक तथा कमर में तलवार बांधे खड़ा  पाया। ब्रह्माजी ने पूछा, "हे पुरुष तुम कौन हो? वह पुरुष बोला,"मैं आपके चित्र (शरीर) में गुप्त रूप से निवास कर रहा था। अब आप मेरा नामकरण करे और मेरे लिए जो भी दायित्व हो सौंपे। तब ब्रह्माजी बोले,"क्योंकि तुम मेरे चित्र  (शरीर) में गुप्त (विलीन) थे, इस लिए तुम्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना जाएगा और तुम्हारा कार्य होगा प्रत्येक प्राणी की काया में गुप्त रूप से निवास करते हुए उनके द्वा...

शिवालय के मन्दिर का प्रवेशद्वार भूमि से कुछ ऊंचा ही रखा जाता है।

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श्री गणेश का आदर्श क्या है। श्री गणेश का आदर्श क्या हैं। बुद्धि एवं समृद्धि का सदुपयोग, यहीं इनका सिद्धांत है,इसलिए आवश्यक गुण श्रीगणेश के हाथ में स्थित प्रतीकों द्वारा बताए जाते हैं।  अंकुश-संयम, आत्मनियंत्रण का,कमल- पवित्रता, नीरलेपता का पुस्तक-उच्च उदार विचारधारा का एवं  मोदक मधुर स्वभाव का प्रतीक हैं। वे मूषक जैसे तुच्छ रंग को भी चाहते हैं, अपनाते है, ऐसे गुण रखने से ही आत्म - दर्शन शिवदर्शन की पात्रता होती हैं। हनुमान का आदर्श क्या है संकट मोचन हनुमान जी के आदर्श क्या है। विश्व हित के लिए तत्परता युक्त सेवा और संयम। ब्रम्हचर्यमय जीवन ही इनका मूल सिद्धांत है, यही कारण हैं कि हनुमान सदैव श्रीराम के कार्यों में सहयोगी रहते हैं, अर्जुन के रथ पर विराजित रहे हैं, ऐसी तत्परता बरतने से ही विश्व - कल्याणमय शिवत्व या अपने आत्मदर्शन की पात्रता को प्राप्त कर सकता है। श्री गणेश हनुमान की परीक्षा में उत्तीर्ण होने से साधक को शिव-रूप आत्मा की प्राप्ति हो सकती है। किंतु इतनी महान विजय जिसको प्राप्त होती है उसमें अहंकार आ सकता है, मैं बड़ा हूँ, श्रेष्ठ हूँ, ऐसा अहंकार ही तो पग पग पर आत्मा...

शिव मन्दिर में नन्दी दर्शन सर्वप्रथम क्यों करते हैं नन्दी दर्शन से हमें क्या शिक्षा मिलती हैं

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शिवालय की चर्चा की जाय तो प्रत्येक शिव मन्दिर में नन्दी के दर्शन सर्वप्रथम होते हैं।  नन्दी महादेव जी का वाहन हैं।  नन्दी सामान्य बैल नहीं हैं। नन्दी ब्रह्मचर्य के प्रतीक है। शिवजी का वाहन जैसे नन्दी है। वैसे ही हमारे आत्मा का वाहन शरीर काया है। शिवजी को आत्मा एवं नन्दी को शरीर का प्रतीक समझा जा सकता है। जैसे नन्दी की दृष्टि सदा शिवजी की ओर रहीं है, वैसे ही हमारा शरीर आत्माविमुख बने, शरीर का लक्ष्य आत्मा बने,यह संकेत समझना चाहिए  शिव का अर्थ हैं कल्याण।  सभी के कल्याण का भाव आत्मसात करें, सभी के मंगल की कामना करे तो जीव शिवमय बन जाता है। अपने आत्मा में ऐसे शिव तत्व को प्रगट करने की साधना को ही शिव पूजा या शिव दर्शन कह सकते है, और इसके लिए सर्वप्रथम  आत्मा के वाहन शरीर को उपयुक्त बनाना होगा। शरीर नन्दी की तरह आत्माविमुख बने शिव भाव से ओत प्रोत बने।  इसके लिए तप एवं ब्रह्मचर्य की साधना करे  स्थिर एवं दृढ़ रहे यही महत्वपूर्ण शिक्षा नन्दी के माध्यम से दी गईं हैं। हमारा मन कछुआ जैसा कवचधारी सुदृढ़ बनना चाहिए  नन्दी के बाद शिव की ओर आगे बढ़ने से कछुआ आत...

सृजनकर्ता ब्रह्माजी

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ब्रह्माजी हिंदुओं के त्रिदेवों में से एक देवता हैं। भागवत आदि पुराणों के अनुसार जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे उस समय श्री विष्णु के नाभि से एक कमल निकला, उसी कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी का रंग पीत मिश्रित कहा गया हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। ये सृष्टि करनेवाले देवता हैं। पुराण में ब्रह्मा वेदों को प्रगट करने वाले देवता कहे गए हैं।  मनुष्य के कर्मानुसार शुभाशुभ फल को ब्रह्माजी ही गर्भावस्था में स्थिर कर देते हैं  कहते हैं, पहले इनके पांच सिर थे,  शिवजी ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया ब्रह्माजी के मिथ्या कथन से रूष्ट होकर शिवजी इनका सर काट दिया था और ये चतुर्मुख हो गए। ब्रह्माजी का वाहन हंस है ब्रह्माजी के मानस पुत्र कितने है। अलग अलग ग्रंथों में इनके मानस पुत्रों की संख्या अलग अलग बताई गई हैं  कहीं दस, कहीं सत्रह, और कहीं इक्कीस  ब्रह्माजी के मानस पुत्र सत्रह हैं  मन से मरीचि  कान से पुलस्त्य  त्वचा से भृगु  छाया से कंदभ  इच्छा से सनक सनंदन सनातन सनतकुमार  शरीर से मनु  नेत्र से अत्री  नाभि से पुलह  प्राण स...

पांच देवियां हैं जो संपूर्ण प्रकृति की संचालन करती हैं

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नारदजी श्रीनारायण से पुछते हे प्रभु मूलप्रकृति का स्वरूप क्या है  उनका लक्षण क्या हैं और वे किस प्रकार प्रगट हुई।  श्रीनारायण कहते हैं - हे वत्स महामाया युक्त परमेश्वर सृष्टि के निमित्त अर्धनारीश्वर बन गये, जिनका दक्षिणार्थ भाग पुरुष और वामार्ध भाग प्रकृति कहा जाता हैं। जैसे अग्नि में दाहिका शक्ति अभिन्न रूप से स्थित हैं, वैसे ही परमात्मा और प्रकृतिरूपा शक्ति भी अभिन्न हैं।  इसीलिए योगिजन स्त्री और पुरुष का भेद नहीं करते वे निरंतर चिन्तन करते है की सभी कुछ ब्रह्मा है। भगवती मूलप्रकृति सृष्टि करने की कामना से  भक्तों पर अनुग्रह करने हेतु पांच रूपों में अवतरित हुई  गणेशमाता दुर्गा शिवप्रिया तथा शिवरूपा है। जो पूर्ण ब्रह्मस्वरूपा हैं।  शुद्ध सत्वरूपा महालक्ष्मी अधिष्ठात्री तथा आजीविका स्वरूपिणी हैं, वे वैकुंठ में अपने स्वामी श्री विष्णु की सेवा में तत्पर रहती हैं। वे स्वर्ग मे स्वर्गलक्ष्मी, राजाओं में राज्यलक्ष्मी, गृहस्थ मनुष्यों के घर में गृहलक्ष्मी और सभी प्राणियों में तथा पदार्थो में शोभारूप में विराजमान रहती हैं। भगवती सरस्वती परमात्मा की वाणी, बुद्धि, व...

नवरात्रि में मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आयेगीं इस साल

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 मां दुर्गा हर तरह की दुर्गति का नाश करनेवाली शक्ति की देवी कही गई हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में दुर्गा देवी को सर्वोच्च स्थान दिया गया हैं।  देश विदेश में उनके विभिन्न रूपों की पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ आराधना की जाती हैं।  धर्मग्रंथों में यह भी कहा गया हैं की देविया अलग अलग नामवाली हो सकती हैं लेकिन अपने भक्तों को आशीर्वाद सब समान रूप से देती है। इस बार नवरात्रि में मां दुर्गा हाथी पे सवार होकर आयेगी हाथी पर मां का आगमन शुभ माना जाता है।  इस वर्ष चैत नवरात्रि 30 मार्च से प्रारंभ होगी और 6 अप्रैल को नवमी के साथ इसका समापन होगा मां दुर्गा के अनंत रूप है श्रद्धालु इनके सभी रूपों की स्तुति कर इनकी कृपा के पात्र बनते है । वर्ष में दो बार मां दुर्गा के नौ रूपो की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं। देश भर में नवदुर्गा पूजन उल्लास और भक्ति भाव से मनाया जाता है  प्रथम शैलपुत्री द्वितीय ब्रह्मचारिणी तृतीय चंद्रघंटा चौथी कूष्मांडा पांचवीं स्कंदमाता  छठी कात्यायनी सातवीं कालरात्रि आठवीं महागौरी नवीं सिद्धिदात्री। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न नौ शक्ति रूपों की अर...