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भगवान चित्रगुप्त प्रत्येक प्राणी के शरीर में गुप्त रूप से निवास करते है

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एक दिव्य शक्ति, जो अंतःकरण में चित्रित  एक दिव्य शक्ति जो अंत:करण में चित्रित चित्रों को पढ़ती है, उसी के अनुसार उस व्यक्ति के जीवन को नियमित करती है अच्छे - बुरे कर्मों का फल भोग प्रदान करती है, न्याय करती है।  उसी दिव्य देव शक्ति का नाम चित्रगुप्त है। चित्रगुप्त जी कायस्थों के जनक है। कायस्थों का स्रोत श्री चित्रगुप्त जी को माना जाता है। कहा जाता है कि जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की तो यमराज ने उनसे मानवों का विवरण रखने में सहायता मांगी।  यह सुन ब्रह्माजी ध्यान - साधना में लीन हो गए और जब उन्होंने आँखें खोली तो एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात, पुस्तक तथा कमर में तलवार बांधे खड़ा  पाया। ब्रह्माजी ने पूछा, "हे पुरुष तुम कौन हो? वह पुरुष बोला,"मैं आपके चित्र (शरीर) में गुप्त रूप से निवास कर रहा था। अब आप मेरा नामकरण करे और मेरे लिए जो भी दायित्व हो सौंपे। तब ब्रह्माजी बोले,"क्योंकि तुम मेरे चित्र  (शरीर) में गुप्त (विलीन) थे, इस लिए तुम्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना जाएगा और तुम्हारा कार्य होगा प्रत्येक प्राणी की काया में गुप्त रूप से निवास करते हुए उनके द्वा...

शिवालय के मन्दिर का प्रवेशद्वार भूमि से कुछ ऊंचा ही रखा जाता है।

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श्री गणेश का आदर्श क्या है। श्री गणेश का आदर्श क्या हैं। बुद्धि एवं समृद्धि का सदुपयोग, यहीं इनका सिद्धांत है,इसलिए आवश्यक गुण श्रीगणेश के हाथ में स्थित प्रतीकों द्वारा बताए जाते हैं।  अंकुश-संयम, आत्मनियंत्रण का,कमल- पवित्रता, नीरलेपता का पुस्तक-उच्च उदार विचारधारा का एवं  मोदक मधुर स्वभाव का प्रतीक हैं। वे मूषक जैसे तुच्छ रंग को भी चाहते हैं, अपनाते है, ऐसे गुण रखने से ही आत्म - दर्शन शिवदर्शन की पात्रता होती हैं। हनुमान का आदर्श क्या है संकट मोचन हनुमान जी के आदर्श क्या है। विश्व हित के लिए तत्परता युक्त सेवा और संयम। ब्रम्हचर्यमय जीवन ही इनका मूल सिद्धांत है, यही कारण हैं कि हनुमान सदैव श्रीराम के कार्यों में सहयोगी रहते हैं, अर्जुन के रथ पर विराजित रहे हैं, ऐसी तत्परता बरतने से ही विश्व - कल्याणमय शिवत्व या अपने आत्मदर्शन की पात्रता को प्राप्त कर सकता है। श्री गणेश हनुमान की परीक्षा में उत्तीर्ण होने से साधक को शिव-रूप आत्मा की प्राप्ति हो सकती है। किंतु इतनी महान विजय जिसको प्राप्त होती है उसमें अहंकार आ सकता है, मैं बड़ा हूँ, श्रेष्ठ हूँ, ऐसा अहंकार ही तो पग पग पर आत्मा...

शिव मन्दिर में नन्दी दर्शन सर्वप्रथम क्यों करते हैं नन्दी दर्शन से हमें क्या शिक्षा मिलती हैं

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शिवालय की चर्चा की जाय तो प्रत्येक शिव मन्दिर में नन्दी के दर्शन सर्वप्रथम होते हैं।  नन्दी महादेव जी का वाहन हैं।  नन्दी सामान्य बैल नहीं हैं। नन्दी ब्रह्मचर्य के प्रतीक है। शिवजी का वाहन जैसे नन्दी है। वैसे ही हमारे आत्मा का वाहन शरीर काया है। शिवजी को आत्मा एवं नन्दी को शरीर का प्रतीक समझा जा सकता है। जैसे नन्दी की दृष्टि सदा शिवजी की ओर रहीं है, वैसे ही हमारा शरीर आत्माविमुख बने, शरीर का लक्ष्य आत्मा बने,यह संकेत समझना चाहिए  शिव का अर्थ हैं कल्याण।  सभी के कल्याण का भाव आत्मसात करें, सभी के मंगल की कामना करे तो जीव शिवमय बन जाता है। अपने आत्मा में ऐसे शिव तत्व को प्रगट करने की साधना को ही शिव पूजा या शिव दर्शन कह सकते है, और इसके लिए सर्वप्रथम  आत्मा के वाहन शरीर को उपयुक्त बनाना होगा। शरीर नन्दी की तरह आत्माविमुख बने शिव भाव से ओत प्रोत बने।  इसके लिए तप एवं ब्रह्मचर्य की साधना करे  स्थिर एवं दृढ़ रहे यही महत्वपूर्ण शिक्षा नन्दी के माध्यम से दी गईं हैं। हमारा मन कछुआ जैसा कवचधारी सुदृढ़ बनना चाहिए  नन्दी के बाद शिव की ओर आगे बढ़ने से कछुआ आत...

सृजनकर्ता ब्रह्माजी

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ब्रह्माजी हिंदुओं के त्रिदेवों में से एक देवता हैं। भागवत आदि पुराणों के अनुसार जब भगवान विष्णु योगनिद्रा में थे उस समय श्री विष्णु के नाभि से एक कमल निकला, उसी कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्माजी का रंग पीत मिश्रित कहा गया हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। ये सृष्टि करनेवाले देवता हैं। पुराण में ब्रह्मा वेदों को प्रगट करने वाले देवता कहे गए हैं।  मनुष्य के कर्मानुसार शुभाशुभ फल को ब्रह्माजी ही गर्भावस्था में स्थिर कर देते हैं  कहते हैं, पहले इनके पांच सिर थे,  शिवजी ब्रह्माजी का एक सिर काट दिया ब्रह्माजी के मिथ्या कथन से रूष्ट होकर शिवजी इनका सर काट दिया था और ये चतुर्मुख हो गए। ब्रह्माजी का वाहन हंस है ब्रह्माजी के मानस पुत्र कितने है। अलग अलग ग्रंथों में इनके मानस पुत्रों की संख्या अलग अलग बताई गई हैं  कहीं दस, कहीं सत्रह, और कहीं इक्कीस  ब्रह्माजी के मानस पुत्र सत्रह हैं  मन से मरीचि  कान से पुलस्त्य  त्वचा से भृगु  छाया से कंदभ  इच्छा से सनक सनंदन सनातन सनतकुमार  शरीर से मनु  नेत्र से अत्री  नाभि से पुलह  प्राण स...

पांच देवियां हैं जो संपूर्ण प्रकृति की संचालन करती हैं

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नारदजी श्रीनारायण से पुछते हे प्रभु मूलप्रकृति का स्वरूप क्या है  उनका लक्षण क्या हैं और वे किस प्रकार प्रगट हुई।  श्रीनारायण कहते हैं - हे वत्स महामाया युक्त परमेश्वर सृष्टि के निमित्त अर्धनारीश्वर बन गये, जिनका दक्षिणार्थ भाग पुरुष और वामार्ध भाग प्रकृति कहा जाता हैं। जैसे अग्नि में दाहिका शक्ति अभिन्न रूप से स्थित हैं, वैसे ही परमात्मा और प्रकृतिरूपा शक्ति भी अभिन्न हैं।  इसीलिए योगिजन स्त्री और पुरुष का भेद नहीं करते वे निरंतर चिन्तन करते है की सभी कुछ ब्रह्मा है। भगवती मूलप्रकृति सृष्टि करने की कामना से  भक्तों पर अनुग्रह करने हेतु पांच रूपों में अवतरित हुई  गणेशमाता दुर्गा शिवप्रिया तथा शिवरूपा है। जो पूर्ण ब्रह्मस्वरूपा हैं।  शुद्ध सत्वरूपा महालक्ष्मी अधिष्ठात्री तथा आजीविका स्वरूपिणी हैं, वे वैकुंठ में अपने स्वामी श्री विष्णु की सेवा में तत्पर रहती हैं। वे स्वर्ग मे स्वर्गलक्ष्मी, राजाओं में राज्यलक्ष्मी, गृहस्थ मनुष्यों के घर में गृहलक्ष्मी और सभी प्राणियों में तथा पदार्थो में शोभारूप में विराजमान रहती हैं। भगवती सरस्वती परमात्मा की वाणी, बुद्धि, व...

नवरात्रि में मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आयेगीं इस साल

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 मां दुर्गा हर तरह की दुर्गति का नाश करनेवाली शक्ति की देवी कही गई हैं। हिंदू धर्मग्रंथों में दुर्गा देवी को सर्वोच्च स्थान दिया गया हैं।  देश विदेश में उनके विभिन्न रूपों की पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ आराधना की जाती हैं।  धर्मग्रंथों में यह भी कहा गया हैं की देविया अलग अलग नामवाली हो सकती हैं लेकिन अपने भक्तों को आशीर्वाद सब समान रूप से देती है। इस बार नवरात्रि में मां दुर्गा हाथी पे सवार होकर आयेगी हाथी पर मां का आगमन शुभ माना जाता है।  इस वर्ष चैत नवरात्रि 30 मार्च से प्रारंभ होगी और 6 अप्रैल को नवमी के साथ इसका समापन होगा मां दुर्गा के अनंत रूप है श्रद्धालु इनके सभी रूपों की स्तुति कर इनकी कृपा के पात्र बनते है । वर्ष में दो बार मां दुर्गा के नौ रूपो की विशेष पूजा अर्चना की जाती हैं। देश भर में नवदुर्गा पूजन उल्लास और भक्ति भाव से मनाया जाता है  प्रथम शैलपुत्री द्वितीय ब्रह्मचारिणी तृतीय चंद्रघंटा चौथी कूष्मांडा पांचवीं स्कंदमाता  छठी कात्यायनी सातवीं कालरात्रि आठवीं महागौरी नवीं सिद्धिदात्री। इन नौ दिनों में मां दुर्गा के विभिन्न नौ शक्ति रूपों की अर...

होलिका अपने भतीजे को गोदी में लेकर अग्नि में क्यों बैठी

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14 मार्च को होली हैं। क्यों मनाई जाती है। होली पौराणिक कथाओं के अनुसार हिरण्यकश्यप पुत्र प्रहलाद विष्णु भगवान का भक्त था। प्रहलाद के पिता को ब्रह्माजी से वरदान मिला था। न दिन में मर सकते हैं न रात में न घर के अंदर मर सकते हैं और न ही घर के बाहर न अस्त्र से मर सकते हैं और न ही शस्त्र से, न नर से मर सकते हैं और न ही पशु से न आकाश में मर सकते हैं न पाताल में ब्रह्माजी से वरदान पाने के बाद प्रहलाद के पिता को अहंकार हो गया।अब तो मैं अमर हो गया हूँ मुझे कोई मार ही नहीं सकता। उसने अपने राज्य में ऐलान करवा दिया।आज से विष्णु की पूजा नहीं होगी। जो विष्णु की पूजा करेगा उसे मृत्यु दण्ड दिया जायेगा आज से मेरी पूजा होगीं। जो मेरी पूजा नहीं करेगा उसे मृत्यु दंड दिया जाएगा। मरने से बचने के लिए सब लोग उसकी पूजा करने लगे हिरण्यकश्यप अपने पुत्र बालक प्रहलाद से बोला आज से तुम विष्णु की पूजा नहीं करोगें विष्णु का नाम लेने वाले को मृत्यु दण्ड दिया जायेगा  आज से सबका भगवान मैं हूँ आज से सब लोग मेरी पूजा करेगें मैं ही सबका भगवान हूँ बालक प्रहलाद बोले आप मेरे पिता श्री है।आप कैसे भगवान हो सकते है माता पिता...