Posts

Follow

सावन का पहला सोमवार कब है

Image
सावन का महीना शिवजी को क्यों प्रिय हैं  धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता पार्वती ने शिवजी को पाने के लिए कठोर तप किया था और सावन सोमवार का व्रत किया था, भगवान शंकर देवी पार्वती के तपस्या से प्रसन्न होकर देवी पार्वती को पत्नी रूप में  स्वीकार किया था तभी से सावन सोमवार का विशेष महत्व है। इस साल सावन मास की शुरुआत 11 जुलाई शुक्रवार 2025 में हो रहा हैं सावन का पहला सोमवार 14 जुलाई को पड़ेगा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन में श्रद्धा से की गई पूजा भगवान शंकर को अत्यंत प्रिय होती हैं  भगवान शिव भक्तों की हर मनोकामनाएं पूरी करते है सावन के पहले सोमवार को प्रथम श्रावणी सोमवार कहा जाता हैं हिंदू धर्म में सावन सोमवार का विशेष महत्व है शिव भक्त इस दिन उपवास रखते हैं, और पूरे विधि विधान से भगवान शंकर की पूजा करते हैं  शिवपुराण में कहा गया है कि सावन के महीने में शिवलिंग पर जल अर्पित करने से विशेष पुण्य मिलता है। यह महीना पूरी तरह से भगवान शिव की पूजा को समर्पित होता है ऐसा माना जाता है कि सावन के महीने में सच्चे मन से शिवजी की पूजा करने से दुखों का नाश होता है और जीवन में सु...

गौतम ऋषि अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बनने का शाप क्यों दिया

Image
गौतम ऋषि अपनी पत्नी अहिल्या के साथ आश्रम में रहते थे  ऋषि की  पत्नी अहिल्या बहुत सुंदर थी। गौतम ऋषि प्रतिदिन भोर में गंगा स्नान करने जाते थे  अहिल्या की सुंदरता को देखकर देवराज इंद्र अहिल्या पे मोहित हो गए  देवराज इंद्र ने अहिल्या के साथ छल किया  गौतम ऋषि जब भोर में गंगा स्नान के लिए गए  देवराज इंद्र उसी समय गौतम ऋषि का रूप धारण कर के अहिल्या के पास आए अहिल्या को लगा मेरे स्वामी आ गए हैं देवराज इंद्र ने अहिल्या के साथ छल किया  उसी समय गौतम ऋषि अपने आश्रम में आए  गौतम ऋषि क्रोध में इंद्र से बोले कौन हो तुम मुझे अपना असली रूप दिखाओ ऋषि बने इंद्र गौतम ऋषि के सामने देवराज इंद्र के रूप में प्रगट हुए  गौतम ऋषि ने देवराज इंद्र को शाप दिया जिस वासना के लिए तुमने ये पाप किया है आज से तू उसके योग्य नहीं रहेगा  अहिल्या ऋषि से बोली स्वामी मुझे क्षमा करें  इंद्र ने मेरे साथ छल किया इसमें मेरी कोई गलती नहीं है  गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी अहिल्या की एक भी बात नहीं सुनी गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी अहिल्या को पत्थर बनने का शाप दे दिया  ऋषि पत्नी अह...

गरुण ने नागों को काट कर श्रीराम लक्ष्मण को नागपाश से छुड़ाया

Image
  विष्णुजी के वाहन हैं गरुण जी हिंदू मान्यताओं के अनुसार गरुण पक्षियों के राजा और भगवान विष्णु के वाहन हैं  गरुण कश्यप ऋषि और उनकी दूसरी पत्नी विनता की संतान हैं। कश्यप ऋषि से कद्दू ने एक हजार नाग-पुत्र और विनता ने केवल दो तेजस्वी पुत्र वरदान के रूप में मांगे।  वरदान के परिणामस्वरूप कद्दू ने एक हजार अंडे और विनता ने दो अंडे दिए। कद्दू के अंडों के फूटने पर उसे एक हजार नाग-पुत्र मिल गए। किन्तु विनता के अंडे उस समय तक नहीं फूटे।  उतावली होकर विनता ने एक अंडे को फोड़ डाला। उसमें से निकलने वाले बच्चे का ऊपरी अंग पूर्ण हो चुका था, किंतु नीचे का अंग नहीं बन पाये थे। उस बच्चे ने क्रोधित होकर अपनी माता को शाप दे दिया कि "माता तुमने कच्चे अंडे को तोड़ दिया है, इस लिए तुम्हें पांच सौ वर्षों तक अपनी सौत की दासी बन कर रहना होगा। ध्यान रहे दूसरे अंडे को अपने आप फूटने देना। उस अंडे से एक अत्यंत तेजस्वी बालक होगा और वही तुम्हें इस शाप से मुक्ति दिलाएगा  इतना कहकर अरुण नामक वह बालक आकाश में उड़ गया  और सूर्य के रथ का सारथि बन गया। एक दिन कद्दू और विनता की दृष्टि समुद्र मंथन...

छिन्नमस्ता देवी ने किसकी भूख मिटाने के लिए अपना सिर काट दिया

Image
छिन्नमस्ता देवी को कटे सिरवाली देवी क्यों कहा जाता हैं भवानी छिन्नमस्ता दस विद्याओं में एक हैं। छिन्नमस्ता का शाब्दिक अर्थ हैं- कटे सिरवाली।  ये साहस, बुद्धि और विवेक प्रदान करने वाली देवी है। देवी छिन्नमस्ता को प्राय: वस्त्रहीन रति एवं काम के ऊपर खड़ा चित्रित किया जाता हैं। वे इंगित करती हैं कि काम पर विजय पाना जीवन का उद्देश्य बनाएं। जो व्यक्ति इनकी श्रद्धापूर्वक भक्ति करता है वह काम विजयी, धन्य-धान्य से सम्पन्न  और अनेक विद्याओं का जानकार हो जाता हैं यह भी कहा जाता कि इनके नियम में चूक होने पर ये भक्त को कड़ा दंड देती हैं। हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार एक बार भवानी या पार्वती अपनी दो सखियों जया और विजया के साथ मंदाकिनी नदी में स्नान करने गई। स्नान के बाद तीनों को बड़ी जोर को भूख लगी। भूख के कारण भवानी मां का रंग काला पड़ गया। जया और विजया को भी भूख बर्दाश्त नहीं हुई। जया और विजया मां भवानी से भोजन की माँग की। भवानी ने प्रतीक्षा करने के लिए कहा। कुछ देर के बाद जया और विजया फिर भोजन की माँग की। देवी ने पुनः प्रतिक्षा करने को कहा लेकिन जया और विजया को भूख नहीं बर्दाश्त हुई और उन...

भगवान चित्रगुप्त प्रत्येक प्राणी के शरीर में गुप्त रूप से निवास करते है

Image
एक दिव्य शक्ति, जो अंतःकरण में चित्रित  एक दिव्य शक्ति जो अंत:करण में चित्रित चित्रों को पढ़ती है, उसी के अनुसार उस व्यक्ति के जीवन को नियमित करती है अच्छे - बुरे कर्मों का फल भोग प्रदान करती है, न्याय करती है।  उसी दिव्य देव शक्ति का नाम चित्रगुप्त है। चित्रगुप्त जी कायस्थों के जनक है। कायस्थों का स्रोत श्री चित्रगुप्त जी को माना जाता है। कहा जाता है कि जब ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की तो यमराज ने उनसे मानवों का विवरण रखने में सहायता मांगी।  यह सुन ब्रह्माजी ध्यान - साधना में लीन हो गए और जब उन्होंने आँखें खोली तो एक पुरुष को अपने सामने कलम, दवात, पुस्तक तथा कमर में तलवार बांधे खड़ा  पाया। ब्रह्माजी ने पूछा, "हे पुरुष तुम कौन हो? वह पुरुष बोला,"मैं आपके चित्र (शरीर) में गुप्त रूप से निवास कर रहा था। अब आप मेरा नामकरण करे और मेरे लिए जो भी दायित्व हो सौंपे। तब ब्रह्माजी बोले,"क्योंकि तुम मेरे चित्र  (शरीर) में गुप्त (विलीन) थे, इस लिए तुम्हें चित्रगुप्त के नाम से जाना जाएगा और तुम्हारा कार्य होगा प्रत्येक प्राणी की काया में गुप्त रूप से निवास करते हुए उनके द्वा...

शिवालय के मन्दिर का प्रवेशद्वार भूमि से कुछ ऊंचा ही रखा जाता है।

Image
श्री गणेश का आदर्श क्या है। श्री गणेश का आदर्श क्या हैं। बुद्धि एवं समृद्धि का सदुपयोग, यहीं इनका सिद्धांत है,इसलिए आवश्यक गुण श्रीगणेश के हाथ में स्थित प्रतीकों द्वारा बताए जाते हैं।  अंकुश-संयम, आत्मनियंत्रण का,कमल- पवित्रता, नीरलेपता का पुस्तक-उच्च उदार विचारधारा का एवं  मोदक मधुर स्वभाव का प्रतीक हैं। वे मूषक जैसे तुच्छ रंग को भी चाहते हैं, अपनाते है, ऐसे गुण रखने से ही आत्म - दर्शन शिवदर्शन की पात्रता होती हैं। हनुमान का आदर्श क्या है संकट मोचन हनुमान जी के आदर्श क्या है। विश्व हित के लिए तत्परता युक्त सेवा और संयम। ब्रम्हचर्यमय जीवन ही इनका मूल सिद्धांत है, यही कारण हैं कि हनुमान सदैव श्रीराम के कार्यों में सहयोगी रहते हैं, अर्जुन के रथ पर विराजित रहे हैं, ऐसी तत्परता बरतने से ही विश्व - कल्याणमय शिवत्व या अपने आत्मदर्शन की पात्रता को प्राप्त कर सकता है। श्री गणेश हनुमान की परीक्षा में उत्तीर्ण होने से साधक को शिव-रूप आत्मा की प्राप्ति हो सकती है। किंतु इतनी महान विजय जिसको प्राप्त होती है उसमें अहंकार आ सकता है, मैं बड़ा हूँ, श्रेष्ठ हूँ, ऐसा अहंकार ही तो पग पग पर आत्मा...

शिव मन्दिर में नन्दी दर्शन सर्वप्रथम क्यों करते हैं नन्दी दर्शन से हमें क्या शिक्षा मिलती हैं

Image
शिवालय की चर्चा की जाय तो प्रत्येक शिव मन्दिर में नन्दी के दर्शन सर्वप्रथम होते हैं।  नन्दी महादेव जी का वाहन हैं।  नन्दी सामान्य बैल नहीं हैं। नन्दी ब्रह्मचर्य के प्रतीक है। शिवजी का वाहन जैसे नन्दी है। वैसे ही हमारे आत्मा का वाहन शरीर काया है। शिवजी को आत्मा एवं नन्दी को शरीर का प्रतीक समझा जा सकता है। जैसे नन्दी की दृष्टि सदा शिवजी की ओर रहीं है, वैसे ही हमारा शरीर आत्माविमुख बने, शरीर का लक्ष्य आत्मा बने,यह संकेत समझना चाहिए  शिव का अर्थ हैं कल्याण।  सभी के कल्याण का भाव आत्मसात करें, सभी के मंगल की कामना करे तो जीव शिवमय बन जाता है। अपने आत्मा में ऐसे शिव तत्व को प्रगट करने की साधना को ही शिव पूजा या शिव दर्शन कह सकते है, और इसके लिए सर्वप्रथम  आत्मा के वाहन शरीर को उपयुक्त बनाना होगा। शरीर नन्दी की तरह आत्माविमुख बने शिव भाव से ओत प्रोत बने।  इसके लिए तप एवं ब्रह्मचर्य की साधना करे  स्थिर एवं दृढ़ रहे यही महत्वपूर्ण शिक्षा नन्दी के माध्यम से दी गईं हैं। हमारा मन कछुआ जैसा कवचधारी सुदृढ़ बनना चाहिए  नन्दी के बाद शिव की ओर आगे बढ़ने से कछुआ आत...