महिषासुर मर्दिनी (neelam.info)
महिषासुर का जन्म कैसे हुआ
महाप्रतापी दैत्य दनु के दो पुत्र थे जिनका नाम था
रंभ और करंभ जो बहुत ही शक्तिशाली थे रंभ और करंभ का विवाह हो चूका था | लेकिन वे
दोनों संतानहीन थे| इसलिए पुत्र पाने के लिए उन्होनें कठोर तपस्या करने के लिए चल
पड़े दैत्य करंभ जल में डूबकर कठीन तपस्या करने लगा और रंभ ने एक वट वृक्ष के नीचे
अग्नि के सामने साधना आरंभ कर दी|
इंद्र को उनकी तपस्या के बारे में पता चला तो वे बहुत
चिंतित हुए| उन दैत्यों की तपस्या भंग करने के विचार से देवराज इंद्र करंभ के समीप
प्रगट हुए| फिर उन्होनें मगरमच्छ का रूप धारण करके जल में प्रवेश किया और करंभ के
पैर पकड़ लिये| इंद्र की मजबूत पकड़ से वह छुट नहीं पाया और उसकी मृत्यु हो गयी|
करंभ की मृत्यु से रंभ दू:खी हो गया| उसने तलवार निकालकर अपना सिर अग्निदेव को
समर्पित करने का निश्चय कर लिया| तभी
अग्निदेव प्रगट हो गये और बोले,हे दैत्य रंभ यह तुम कैसी मुर्खता करने जा रहे हो तुम
इच्छित वर माँगों| मै तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूँगा| अग्निदेव के समझाने पर
रंभ ने आत्महत्या का विचार त्याग दिया और पार्थना करते हुए बोला, ‘हे अग्निदेव यदि आप
प्रसन्न हैं| तो मुझे तीनों लोकों पर विजय पाने वाला एक महाबली पुत्र देने की कृपा
करे मुझे ऐसा पुत्र चाहिए जिसे देव,दानव गन्धर्व,कोई भी उसे पराजित न कर सके उसमे
असीम शक्ति हो|
अग्निदेव ने रंभ को वर प्रदान कर दिया| रंभ प्रसन्न
मन से अपने महल लौट आया| रंभ ने एक महिषी (भैंस)पर मोहित होकर उसके साथ विवाह कर
लिया|
थोड़े दिनों में महिषी गर्भवती हो गई| एक बार एक दूसरे
भैंसे ने काम में अंधे होकर महिषी का बलपूर्वक हरण करने का प्रयास किया| रंभ महिषी
को बचाने के लिए आया दोनों में भीषण युद्द हुआ| अंत में रंभ उस महाप्रतापी भैंसे
के तीखे सींगों से मारा गया| तब रंभ की पत्नी महिषी अपनी रक्षा के लिए यक्षों के
शरण में गई| यक्षों ने अपने विषैले बाणों से उस भैंसे को मार गिराया|
जब अंतिम संस्कार के लिए रंभ का शव चिता पर रखा गया
तो उसके मृत शरीर को देखकर महिषी दु:खी हो गई| उसने भी पति के साथ अपने प्राण
त्यागने का फैसला लिया और शव के चिता पर बैठ गयी| उसी क्षण उसके शरीर से एक असुर
निकला – महिषासुर | वह रंभ और महिषी का पुत्र था| स्वमं रंभ भी एक दूसरा शरीर धारण
करके रक्तबीज के रूप में चिता से निकला| इस प्रकार महिषासुर और रक्तबीज की उत्पति
हुई| दैत्यो ने महिषासुर को अपना राजा बना लिया
ब्रम्हाजी ने महिषासुर को क्या वरदान दिया |
महिषासुर अपना राज्य भार रक्तबीज को सौंप दिया
और तपस्या करने के लिए स्वयं सुमेरु पर्वत पर चला गया| वहाँ उसने दस हजार वर्षो तक
कठोर तपस्या की| महिषासुर की कठोर तपस्या ने ब्रम्हाजी के आसन को हिला दिया|
ब्रम्हाजी महिषासुर के सामने प्रगट हुए और वर माँगने को कहा| महिषासुर ने वरदान
में ब्रम्हाजी से अमरत्व माँग लिया| ब्रम्हाजी महिषासुर से बोले, जनमे हुए प्राणी
की मृत्यु और मृत प्राणी का पुनर्जन्म सृष्टि में यह क्रम अनिवार्य रूप से चलता
रहता है|
अत: हे दैत्यश्रेष्ठ | अमरत्व को छोडकर तुम कोई दूसरा
वर माँग लो|’’ तब महिषासुर बोला, पितामह, मुझे इच्छा-रूप धारण करने का वर प्रदान
करें | देवता, दैत्य, गन्धर्व, मानव-इनमें से किसी के हाथों मेरी मृत्यु न हो| हे
ब्रम्हदेव| आप मेरी मृत्यु एक ऐसी कन्या के हाथों से सुनिशिचत करें, जो कुँवारी हो
और जिसका जन्म किसी के गर्भ से न हो|’’ ब्रम्हाजी ने महिषासुर को इच्छित वर प्रदान
कर दिया| ब्रम्हाजी से वर प्राप्त करके महिषासुर घोर अभिमानी हो गया| समस्त
प्राणियों को उसने अपने अधीन कर लिया| चारों ओर महिषासुर का राज्य स्थापित हो गया|
ऋषि-मुनि अपने यज्ञों का भाग महिषासुर को देने लगे| पृथ्वी और पाताल पर अधिकार
जमाने के बाद महिषासुर अपना एक दूत कुमांड को देवराज इंद्र की सभा में भेजा|
कुमांड स्वर्गलोक पहुँचा और देवराज इंद्र से बोला स्वर्ग का राज्य महिषासुर को सौप
कर यहाँ से चले जाओं या दैत्यराज महिषासुर के सेवक बनना स्वीकार कर लो यदि तुम्हें
यह प्रस्ताव स्वीकार न हो तो युद्द के लिए तैयार हो महिषासुर का दूत महिषासुर का संदेश देवराज इंद्र
की सभा में सुना दिया इंद्र बोले दूत कुमांड तुम्हारे स्वामी को अपनी शक्ति पर
अभिमान हो गया है, तुम जाकर महिषासुर से कह दो की वह युद्द के लिए तैयार हो जाए|
कुमांड की बात सुनकर महिषासुर
क्रोध से बोला ‘हे दैत्यवीरो| देवता सदा से हमारा अहित करते आए हैं|
उन्होनें हमसे अमृत छीन लिया| हिरण्यकशिपु,बलि आदि अनेक दैत्यों से छल किया था|
उन्हें दंडित करना अति आवश्यक है| आज्ञा मिलते ही दैत्यों ने युद्द की तैयारी आरंभ
कर दी| देवराज इंद्र देवताओं से बोले ‘हे देवों महिषासुर एक दुष्ट,पापी और बलशाली
दैत्य है| ब्रम्हाजी से वर पाकर उसका अभिमान और बढ़ गया है| वह अनेक प्रकार की
मायावी शक्तियों का ज्ञाता है| वह दुष्ट किसी भी पल स्वर्ग पर आक्रमण कर सकता है|
‘हे देवगुरु आप हमारा मार्गदर्शन करे देवगुरु बृहस्पति बोले, ‘हे राजन, संकट के
समय धैर्य रखना अति आवश्यक है| हार-जित तो सदा देव इच्छा पर निर्भय होती है| इसलिए
निर्धारित निति के अनुसार सदा कार्य में लगे रहना चाहिए| कार्य सिद्ध होगा या नही
इसकी चिंता देव पर छोड़ देनी चाहिए| उनकी इच्छा के विना इस सृष्टि में कुछ भी नहीं
घटता देवराज इंद्र बोले हे देवगुरु आप देवताओं के कल्याण के लिए रक्षा मंत्र का
जाप करने की कृपा करें|’’ देवगुरु बृहस्पति बोले, हे इंद्र युद्ध में जाने से
पूर्व आप अन्य देवताओं के साथ ब्रम्हाजी का आशीर्वाद अवश्य लें| परमपिता
ब्रम्हादेव सृष्टि के रचनाकार हैं| देवगुरु बृहस्पति के साथ देवराज इंद्र
ब्रम्हाजी के शरण में गए और बोले ‘हे ब्रम्हादेव आपके आशीर्वाद से बल पाकर
महिषासुर स्वर्ग पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा है| हे पितामह उससे भयभीत होकर
हम आपके पास आए हैं| ब्रम्हाजी बोले देवराज इंद्र, हम सभी कैलास पर चलते हैं और
भगवान शिव एवं विष्णु के साथ मिल-बैठकर आगे की रणनीति तय करेगें सामूहिक परामर्श
से देश और काल के सम्बन्ध में भली-भाँती विचार करके युद्द करना उचित होगा| सभी
देवताओं के साथ ब्रम्हाजी कैलास पर्वत पर पहुचें भगवान शिव की स्तुति की और उन्हें
साथ लेकर विष्णुलोक गए| उन्होनें महिषासुर के बारे में बताकर श्रीहरी से युद्द में
सहायता करने की पार्थना की| सभी देवगण अपने-अपने वाहनों पर विराज होकर युद्द के
लिए चल पड़े फिर शीघ्र ही दोनों सेनाओं में भयंकर युद्द आरंभ हो गया| देवराज इंद्र
ने दैत्य सेना के सेनापति चिक्षुर और महाबली विडाल को अपने बाणों से मूर्छित कर
दिया| यमराज ने ताम्र नामक भयानक दैत्य को अपने दंड के प्रहार से घायल करके अचेत
कर दिया| शकिशाली दैत्य सेनापतियों के घायल होने पर महिषासुर भयंकर गर्जन करता हुआ
गदा ले कर युद्द भूमि में आ गया| उसने देवताओं के आस-पास विचित्र-सी माया की रचना
कर दी, माया की रचना करते ही देवताओं को चारों ओर अनेक महिषासुर दिखाई देने लगे|
उसकी माया से सभी देव-वीर भयभीत हो गए| तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से
उस माया को काट दिया| यह देख महिषासुर ने भगवान विष्णु और शिवजी के साथ महिषासुर
एवं उसके सहयोगी दैत्यों का भीषण युद्द होने लगा| धीरे-धीरे महिषासुर का पक्ष
मजबूत होता चला गया| भगवान शिव और विष्णु ने अपने अस्त्र-शत्रों से महिषासुर को
समाप्त करने का प्रयास किया, किन्तु वे उसे परास्त नहीं कर सके| महिषासुर ने अपने
पराक्रम के बल पर देवराज इंद्र के ऐरावत हाथी और कामधेनु को अपने अधिकार में कर
लिया| अंत में हारकर भगवान विष्णु,शिव और ब्रम्हाजी अपने-अपने लोको को लौट गये;
जबकि इंद्र आदि सभी देवता वनों,पर्वतों और कंदराओं में छिप गए|
महिषासुर ने
स्वर्ग पर अधिकार कर लिया महिषासुर ने देवताओं के सभी
अधिकारों को अपने हाथो में ले लिया देवताओं के आसनों पर उसके दैत्य मंत्री बैठने
लगे| महिषासुर ने दैत्यों को आदेश देते हुए,कहा, ‘दैत्य वीरो,देवता पुन: शक्ति
एकत्रित करके हम पर आक्रमण करे, इससे पहले हम उन्हें कुचल डाले
महिषासुर की आज्ञा पाकर दैत्य देवताओं को तीनों लोको में ढूढने लगे| इस प्रकार देवताओं को प्राण बचाने के लिए वन-वन भटकना पड़ रहा था| भयानक स्थिति में उन्हें अनेक कष्ट उठाने पड़ रहे थे| अनेक वर्षो तक दू:ख सहने के बाद जब देवताओं का धैर्य जवाब देने लगा तब वे सब ब्रम्हाजी की शरण में गये ‘हे ब्रम्हादेव दैत्यों से पराजित होकर हम पर्वतों की गुफाओं में जानवरों के समान जीवन बिता रहे हैं| हे प्रभु हमारा कल्याण करें| ब्रम्हाजी बोले देवगण, महिषासुर को मेरे वर ने अभिमानी बना दिया है| उसे कोई कुँवारी कन्या ही मार सकती है| किसी पुरुष के हाथों उसकी मृत्यु संभव नहीं है| इसलिए हे पुत्रो हमें भगवान शिव के साथ विष्णुजी के शरण में चलना चाहिए वे कोई-न-कोई युक्ति अवश्य सुझाय्एगें|’’इंद्र सहित सभी देवता ब्रम्हाजी के साथ पहले कैलास पर गये| वहाँ से शिवजी को साथ लेकर वैकुंठ पहुचें भगवान विष्णु बोले ‘देवराज इंद्र महिषासुर को किसी कुँवारी कन्या के हाथों मृत्यु का वरदान प्राप्त है| यदि संपूर्ण देवताओं के तेज से कोई शक्तिशाली देवी प्रगट हो जाएँ तो वे महिषासुर का वध कर सकती हैं| आप सब अपनी शक्तियों से ऐसा करने का अनुरोध करें| साथ ही समस्त देवियाँ भी इस पार्थना में शामिल हो जाएँ, संपूर्ण शक्तियों और तेज के समिश्रण से एक महान शक्तिशाली देवी प्रगट हो जाएँ | इस प्रकार हमारी संयुक्त शक्ति के अंश से उत्पन्न वह परम शक्तिशाली देवी दैत्य महिषासुर का संहार अवश्य कर देगीं
उनके भयंकर नाद से संपूर्ण आकाश गूंज उठा| देवी का वह
अत्यंत उच्च स्वर में किया हुआ सिंहनाद कहीं समा न सका| आकाश उनके सामने लघु
प्रतीत होने लगा संपूर्ण ब्रम्हांड में हलचल मच गयी समस्त पर्वत हिलने लगे,पृथ्वी
डोलने लगी, और समुद्र काँप उठे उस समय देवताओं ने अत्यंत प्रसन्नता के साथ
सिंहवाहिनी भवानी से कहा, ‘देवी, तुम्हारी जय हो’ साथ ही महर्षियों ने भी भक्तिभाव
से विनम्र होकर उनका पूजन किया| संपूर्ण त्रिलोकी को क्षोभग्रस्त देखकर दैत्यगण
अपनी समस्त सेना को साथ लेकर हाथों में हथियार लेकर खड़े हो गए| उस समय महिषासुर ने
बड़े क्रोध में आकर कहा,यह क्या हो रहा हैं? फिर वह संपूर्ण असुरों से घिरकर उस
सिंहनाद की ओर लक्ष्य करके दौड़ा और आगे पहुँचकर उसने देवी को देखा,जो अपनी प्रभा
से तीनों लोकों को प्रकाशित कर रहीं थी| उनके चरणों के भर से पृथ्वी दवी जा रही
थी| माथे के मुकुट से आकाश में रेखा-सी खिंच रही थी देवी अपनी हजारों भुजाओं से
संपूर्ण दिशाओं को ढके हुए खड़ीं थी| तत्पश्चात उनके साथ दैत्यों का युद्द छिड़ गया|
चिक्षुर नामक महान असुर महिषासुर का सेनानायक था| वह देवी के साथ युद्द करने लगा|
अन्य दैत्यों की चतुरंगिणी सेना साथ लेकर दूसरा सेनापति चामर भी लड़ने लगा| शाठ
हजार रथियों के साथ आकर उदग्र नामक महादैत्य ने लोहा लिया| एक करोड़ रथियों को साथ
लेकर महाहनु नामक दैत्य युद्द करने लगा|
असिलोमा नामक दैत्य जिसके रोएँ तलवार के समान तीखे
थे,पाच करोड़ रथी सैनिकों के साथ युद्द में आ डटा| शाठ लाख रथियों से घिरा हुआ
वाष्कल नामक दैत्य भी उस युद्दभूमि में लड़ने लगा| परिवारित नामक महादैत्य हाथी
सवार और घुड़सवारों के अनेक दलों तथा एक करोड़ रथियों की सेना लेकर युद्द करने लगा|
विडाल नामक दैत्य पाच अरब रथियों से घिरकर लोहा लेने लगा| स्वयं महिषासुर उस
रणभूमि में करोड़ों, रथों, हाथी और घोड़ो की सेना से घिरा हुआ खड़ा था| वे दैत्य देवी
के साथ तोमर,भिन्दिपाल,शक्ति,मूसल,खड्ग,परशु आदि अस्त्र-शस्त्रों के साथ युद्द कर
रहे थे| कुछ देत्यों ने उनपर शक्ति का प्रहार किया,कुछ दैत्यों ने खड्ग-प्रहार
करके देवी को मार डालने का प्रयास किया|
देवी
और दैत्यों का महासंग्राम --- देवी ने क्रोध में भरकर खेल-खेल में अश्त्र-शस्त्रों
की वर्षा करके दैत्यों के समस्त अश्त्र-शस्त्र काट दिए| देवता और ऋषि-मुनि उनकी
स्तुति कर रहे थे| देवी भगवती दैत्यों के शरीरों पर अस्त्र—शस्त्रों की वर्षा करती
रही| देवी का वाहन सिंह भी क्रोध में भरकर गर्दन के बालों को हिलाता हुआ असुरों की
सेना में इस प्रकार विचरने लगा,मानों वनों में दावानल फ़ैल रहा हो| रणभूमि में दैत्यों
के साथ युद्द करती देवी ने जितने नि:श्वास छोड़े वे सभी तत्काल सैकड़ो-हजारों गणों
के रुप मे प्रगट हो गए और परशु,खड्ग,भिन्दिपाल एवं आदि अस्त्रों द्वारा असुरों का
नाश करते हुए नगाड़े और शंख आदि बाजे बजाने लगे उस संग्राम में कितने ही गण मृदंग
बजा रहे थे| तत्पश्चात देवी भगवती ने अपने से खड्ग से सैकड़ो महादैत्यों का संहार
कर डाला बाज की तरह झपटने वाले दैत्य अपने प्राणों से हाथ जोड़ने लगे जगतम्बा ने
असुरों की विशाल सेना को कुछ ही समय में नष्ट कर दिया, ठीक उसी प्रकार
जैसे-घास-फूस के भारी ढेर को आग कुछ ही क्षणों में भष्म कर देती है| और वह सिंह भी
गर्दन के बालों को हिला-हिलाकर जोर-जोर से
गर्जना करता हुआ दैत्यों के शरीरों से मानों उनके प्राण चुने लेता था| वहा देवी के
गणों ने भी उन महादैत्यों के साथ ऐसा युद्द किया, जिससे की आकाश में खड़े हुए
देवतागण उनसे बहुत संतुष्ट हुए और फूल बरसाने लगे|
माँ जगदंभा महिषासुर का मस्तक काटने के लिए ज्यों ही
आगे बढ़ी महिषासुर तुरंत खड्गधारी पुरुष के रूप में दिखाई देने लगा देवी तुरंत ही
वाणों की वर्षा करके ढाल और तलवार के साथ उस पुरुष को भी बांध दिया महिषासुर तुरंत
विशाल गजराज के रूप में परिवर्तित हो गया और अपनी सूंड से देवी के विशाल सिंह को
खींचने लगा और चीघाड़ने लगा देवी ने अपनी तलवार से उसकी सूँड काट दी तब उस महादैत्य
ने पुन: भैसे का रूप धारण कर लिया और पहले की भांति चराचर प्राणियों सहित तीनों
लोको को व्याकुल करने लगा तब क्रोध में भरी हुई जगन्माता बारंबार उतम मदिरा का पान
करने और लाल आँखें करके हँसने लगी उधर बल और पराक्रम के मद से उन्मत हुआ महिषासुर
गरजने लगा और अपने सींगो से देवी के उपर पर्वतों को फेकने लगा देवी अपने वाणों से
उसके फेके हुए पर्वतों को चूर्ण करती हुई बोली ‘दुष्ट,पापी,मै जब तक मदिरा पीती हूँ तब
तक तू खूब गरज ले मेरे हाथ से यही तेरी मृत्यु हो जाने पर अब शीघ्र ही देवता भी
गर्जना करेगें यह कहकर देवी उछली और उस महादैत्य के उपर चढ़ गयी अपने पैर से उसे
दबाकर उन्होंने शूल से उसके कंठ में आघात किया उनके पैर से दबा होने पर भी
महिषासुर अपने मुख से अभी आधे शरीर से ही बाहर निकलने पाया था की देवि ने अपने
प्रभाव से उसे रोक दिया आधा निकला होने पर भी महिषासुर देवी से युद्द करने लगा तब
देवी ने तलवार से महिषासुर का मस्तक काट दिया संपूर्ण देवता महर्षियों के साथ
दुर्गा देवी का पूजन किया खुशी के दोल नगाड़े बजने लगे गन्धर्वराज गाने लगे और
अप्सराएँ नृत्य करने लगी
🌹🌹🌹🙏जय माता दी
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ReplyDeleteसुन्दर जानकारी के लिए धन्यवाद-आधारशिला
ReplyDeleteएकत्रित होने पर वह एक नारी के रुप में बदल गया और अपने प्रकाश से तीनों लोकों को आलोकित करने लगा|-उत्तम नवदेव
ReplyDeleteमाँ भगवती दुर्गा की उत्पति-अत्यंत सुन्दर रचना आसराकुंज
ReplyDeleteज्ञानवर्धक लेख
ReplyDeleteमहिषासुर का जन्म कैसे हुआ-नवकुंज
ReplyDeleteउत्तम
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर रचना-ज्ञान संसार
ReplyDeleteदेवी जगतम्बा के श्रीअंगो की कांति उदयकाल के सहस्रों सुरों के समान है -उत्तम
ReplyDeleteमाँ जगदंभा महिषासुर का मस्तक काटने के..........उत्तम प्रस्तुति नवचेतना
ReplyDeleteमहासंग्राम में बंध जाने पर महिषासुर भैंसे का रूप त्याग दिया और तत्काल सिंह के रूप में प्रगट हो गया............ ज्ञानवर्धक
ReplyDeleteउत्तम विचार
ReplyDeleteज्ञानवर्धक लेख/-आसरा कुंज
ReplyDeleteजय माता दी
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ReplyDeleteज्ञानवर्धक लेख/-
ReplyDeleteउत्तम विचार
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ReplyDeleteजय माता दी
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ReplyDeleteजय माता दी
ReplyDeleteसंपूर्ण देवता महर्षियों के साथ दुर्गा देवी का पूजन किया खुशी के दोल नगाड़े बजने लगे गन्धर्वराज गाने लगे और अप्सराएँ नृत्य करने लगी -उत्तम
ReplyDeleteज्ञानप्रद-नवकुंज
ReplyDeleteमाँ जगदंभा महिषासुर का मस्तक काटने के..........उत्तम प्रस्तुति नवचेतना
ReplyDeleteजय माता दी
ReplyDelete🙏🙏
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ReplyDeleteजय माता दी
ReplyDeleteરસપ્રદ માહિતી શુભેચ્છાઓ
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ReplyDelete.....दोल नगाड़े बजने लगे गन्धर्वराज गाने लगे और अप्सराएँ नृत्य करने-उत्तम
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ReplyDeleteजय माता दी
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