माँ गायत्री पाँच मुखोंवाली देवी हैं
हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार माता
गायत्री की उत्पति की कथा
एक बार परब्रम्हास्वरूपा माता गायत्री ने सोचा की
चारों ओर अंधकार-ही-अंधकार है| न सूर्य
दिखाई देता है और न ही चंद्रमा,न दिन होता है न ही रात इससे उनके मन में सृष्टि का
निर्माण करने का विचार उत्पन्न हुआ | इसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम भगवान शंकर की
पार्थना की |फलत: भगवान शिव के बाएँ अंश से श्रीविष्णुजी का उदभव हुआ| माता
गायत्री के प्रभाव से ही श्रीविष्णुजी सैकड़ों वर्षों की योगनिद्रा में लीन हो गये|
इससे उनके नेत्रों का समस्त तेज उनकी नाभि में एकत्रित होकर एक कमल के रूप में
उत्पन्न हुआ| इस कमल का मुख कई वर्षो तक बंद रहा| धीरे-धीरे इस कमल का मुख खुलता
गया, जिसमें एक दिव्य तेज प्रगट हुआ माता गायत्री की कृपा से इसी दिव्य तेज से
ब्रम्हाजी का जन्म हुआ जन्म लेने के बाद ही ब्रम्हाजी कठोर तप करने लगे
जब श्रीविष्णुजी योगनिद्रा से जाग्रत हुए तो उन्हें
ब्रम्हाजी के अस्तित्व का ज्ञान हुआ
माता गायत्री की कृपा से उन दोनों के मध्य वाद विवाद
उत्पन्न हो गया
यह-वाद विवाद इतना बढ़ गया कि विष्णुजी ब्रम्हाजी को
मारने के लिए दौड़े तभी वहाँ शिवजी प्रगट हुए दोनों देवताओं को इस प्रकार विवाद
करते हुए देख भगवान शिवजी बोले,’हे पूज्यनीय देवताओं आपका इस प्रकार वाद-विवाद
करना उचित नहीं है इस समय परब्रम्हा-स्वरूप केवल माता गायत्री है, जिनके प्रभाव से
आपका जन्म हुआ है
अत: हे ब्रम्हा, विष्णु वाद-विवाद का त्याग कर माता
गायत्री की अस्तुति करे
शिवजी के मुख से यह वचन सुन कर विष्णुजी और ब्रम्हाजी
ने माता गायत्री की स्तुति आरंभ कर दी
देवताओं की अस्तुति से प्रसन्न होकर माता गायत्री ने उन्हें
दर्शन दिए| तीनों देवताओं ने
उन्हें प्रणाम किया और बोले, हे माँ गायत्री आप सम्पूर्ण जगत की करता धर्ता है|
आपकी शक्ति के स्वरूप ही हमारा उद्भभव हुआ आप ही परब्रम्हा-स्वरूप है, आप ही कण-कण
में शक्ति के रूप में विराजमान है| आपके मुख से निकलने वाला तेज अंधकार को समाप्त
कर प्रकाश उत्पन्न कर रहा है| हे माता अपने ज्ञान रूपी तेज से हमारे अंदर के
अज्ञान रूपी अंधकार को समाप्त करने की कृपा करे| माँ गायत्री उन्हें उनकी उत्पति
का रहस्य बताते हुए बोली, हे देवताओं आप मेरे शक्तिकोष से उत्पन्न हुए हो मै ही
आपके अंदर शक्ति रूप में विराजमान हूँ| आप सभी का जन्म सृष्टि की रचना,पालन-पोषण
और संहार के लिए हुआ है| सृष्टि रचना का कार्य ब्रम्हाजी द्वारा सृष्टि पालन-पोषण
का कार्य विष्णुजी द्वारा और सृष्टि के संहार का कार्य शिवजी द्वारा होना
निर्धारित है
माँ गायत्री पाँच मुखों वाली देवी है
माँ गायत्री
पाँच मुखोवाली देवी है जिन पर मुक्ता,बैदुर्य,स्वर्ण,नीलमणि और स्वेत वर्ण की आभा
सुशोभित होती है| सभी देवियों में माँ गायत्री ही ऐसी देवी है,जो भगवान शिव के
समान तीन नेत्रों से युक्त है चंद्रमा से युक्त,रत्नों का मुकुट धारण करने वाली
माता गायत्री कमल के आसन पर विराजमान होती है|
माता गायत्री
न कोई देवी है और न ही देवता इनमे स्त्री-पुरुष आदि का कोई भेदभाव नहीं है| वेदों
पुराणों आदि धार्मिक ग्रंथो के अनुसार इन्हें परब्रम्हास्वरूपा माना गया है|
गायत्री माता के मन्त्र द्वारा ही चारों वेदों –ऋग्वेद,यजुर्वेद,अथर्ववेद और
सामवेद की उत्पति हुई|
इन वेदों
द्वारा ही अनेक प्रकार की विद्द्याओ और शात्रों का उद्भभव हुआ| इसी कारण से माता गायत्री को वेदमाता और
ज्ञान-विज्ञानं की देवी भी कहा गया है माता गायत्री के आदेशानुसार ब्रम्हाजी ने अनेक
प्राणियों,पेड़ पौधों की रचना की
माता गायत्री
के आदेशानुसार ब्रम्हाजी ने अनेक प्राणियों,पेड़ पौधों और नक्षत्रों आदि की रचना
आरंभ की किन्तु इनमे जीवन का आभाव था अत: ब्रम्हाजी को सृष्टि रचना से अरुचि होने
लगी| इस समस्या के समाधान के लिए ब्रम्हाजी जी ने देवी का स्मरण किया| हे परम
पूज्यनीय माता गायत्री आपकी आज्ञा के अनुसार मैंने सृष्टि रचना का कार्य आरंभ कर
दिया है, किन्तु मेरे द्वारा रचे गये प्राणियों में प्राणों का आभाव है| जिसके
कारण सृष्टि का चक्र पूर्ण रूप से नहीं चल पा रहा है| अत:आप मेरी सहायता करें
जिससे मै अपने कार्य को पूर्ण कर सकूँ
माता
गायत्री के कथन को सुनकर ब्रम्हाजी ने सूर्यदेव का आवाहन किया| ब्रम्हाजी
की विवशता को समझते हुए माता गायत्री बोली,‘हे ब्रम्हदेव, आप इस प्रकार विचलित न
हो| शीघ्र ही मेरा एक अंश सूर्यदेव के मुख से प्रगट होगा जो आपकी पत्नी के रूप में
स्थापित होकर सृष्टि-रचना में आपकी सहायता करेगा|’’ माँ गायत्री के कथन को सुनकर ब्रम्हाजी
ने सूर्यदेव का आवाहन किया| सूर्यदेव वहाँ प्रगट हुए माता गायत्री और ब्रम्हाजी को
प्रणाम करते हुए बोले ‘हे माता गायत्री मेरे लिए क्या आज्ञा है माँ बोली, हे
सूर्यदेव मैंने ब्रम्हाजी को सृष्टि कार्य में सहायता देने का वचन दिया है|
इसके लिए मेरा एक अंश आपके मुख से प्रगट होकर
ब्रम्हाजी के पत्नी के रूप में स्थापित होगा| सूर्यदेव बोले ‘हे माँ आपके तेज का
एक छोटा सा अंश ही तीनों लोकों को भष्म करने की शक्ति रखता है
और आपका विशाल विस्तार, जिसके लिए संपूर्ण ब्रम्हांड
भी अपर्याप्त है, उसे मै किस प्रकार अपने अंदर समाहित कर पाउँगा ? माता गायत्री
शांत स्वर में बोली ‘सूर्यदेव, माता कभी भी ऐसा कार्य नहीं करती,जिससे उसके
पुत्रों को कोई कष्ट अथवा हानि पहुँचे| इसमें सृष्टि के कल्याण के साथ-साथ दूरगामी
कल्याण भी निहित है| मेरी माया द्वारा आप मेरे तेज और विस्तार को अपने में समाहित
कर लेंगे माँ गायत्री ने माया द्वारा अपने तेज को इतना शीतल कर दिया की शुर्यदेव
ने सहज ही उनके एक अंश को अपने अंदर धारण कर लिया| तत्पश्चात सूर्यदेव के मुख से
एक तीव्र प्रकाश-पुंज प्रगट हुआ|
क्षण भर के बाद ही उस प्रकाश-पुंज में से कमल पुष्प
के आसन पर विराजमान एक देवी प्रगट हुई| उस देवी के पांच मुख और तीन नेत्र थे| दस
भुजाधारी माता गायत्री के मस्तक पर चंद्रमा से युक्त रत्नों का भव्य मुकुट सुशोभित
था| सूर्यदेव का एक नाम सविता है सूर्यदेव
के मुख से उत्पन्न होने के कारण माँ गायत्री को सावित्री भी कहा जाता है| माता गायत्री के अवतार धारण करने का समाचार सुनकर भगवान विष्णु,शिवजी व् अन्य देवगण वहाँ उपस्थित हुए और उन पर पुष्पों की वर्षा करते हुए उनकी स्तुति करने लगे| निश्चित मुहूर्त पर ब्रम्हाजी की बारात ने सूर्यलोक की ओर प्रस्थान किया| ब्रम्हाजी के विवाह में सभी देवगण सम्मलित हुए| धार्मिक विधानों के अनुसार ब्रम्हाजी का विवाह देवी गायत्री के साथ सम्पन्न हुआ|
ब्रम्हाजी के
साथ विवाह होने के कारण देवी गायत्री को ब्रम्हाणी कहा गया|
ब्रम्हाजी के
साथ विवाह होने के कारण देवी गायत्री को ब्रम्हाणी कहा गया| विवाह के पश्चात माँ गायत्री ने सृष्टि-रचना में
ब्रम्हाजी की सहायता आरंभ कर दी| ब्रम्हाजी विभिन्न प्रकार के प्राणियों की रचना
करते और देवी गायत्री अपनी वैदिक शक्तियों द्वारा उनमें प्राण डालने का कार्य करती
इस प्रकार सृष्टि का चक्र घुमने लगा| ब्रम्हाजी को प्रसन्न देखकर श्रीविष्णु और
शिवजी के मन में यह विचार उत्पन्न हो गया की ‘माता गायत्री की कृपा-दृष्टि
ब्रम्हाजी पर अधिक है और अन्य देवताओ पर कम | ब्रम्हाजी के लिए उन्होंने एक अंश से
उनकी पत्नी का रूप ग्रहण कर लिया, किन्तु हम पर उन्होंने कोई ध्यान नहीं दिया| जगजननी
माँ गायत्री परब्रम्हा-स्वरूपा हैं| अपने भक्तों के मन की बात जान लेना उनके लिए
अत्यंत सरल है| माँ गायत्री श्रीविष्णु और शिवजी के समक्ष प्रगट हुई ‘हे वत्स अपने
मन से इस विचार को निकाल दे की मै सिर्फ ब्रम्हाजी की ही हितैसी हूँ जिस प्रकार मै
ब्रम्हाजी का हित चाहती हूँ, उसी प्रकार अन्य देवताओं का हित भी मुझे प्रिय हैं|
आप भी मुझसे मनचाहा वर प्राप्त कर सकते है|’’ श्रीविष्णु और शिवजी मन-ही-मन लज्जित
होते हुए बोले, ‘हे माता, अपने विचारों के लिए हम क्षमा पार्थी हैं| आप संपूर्ण
जगत के कण-कण में विद्यमान हैं| आपसे कोई भी तथ्य नहीं छुपा है| यदि आप वर देना
चाहती हैं तो यह वर दें की हमें भी आपके समान तेजयुक्त पत्नी प्राप्त हों|’’ हे
देवताओं मै आपको इच्छानुसार वर प्रदान करती हूँ|
मेरा एक-एक अंश आप दोनों को पत्नी रूप में प्राप्त
होगा,जो लक्ष्मी और सती के नाम से प्रसिद्ध होगा|’’दक्ष प्रजापति के घर देवी सती का
जन्म हुआ| देवी सती माता गायत्री के तेज का ही एक अंश थी| युवा
होने पर देवी सती ने माता गायत्री की इच्छानुसार
भगवान शिवजी का वरण किया| जबकि समुद्र मंथन के कारण उत्पन्न होने के कारण माता
गायत्री के दुसरे अंश देवी लक्ष्मी ने विष्णुजी से विवाह किया|
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ReplyDeleteસુંદર
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