भगवान बुद्ध के विचार - हम जागरूक होकर शुभ मार्ग पर चलते रहेगें neelam.info


चतुर दासी अपनी मालकिन के धैर्य की परीक्षा लेती है|

श्रावस्ती में वैदेहिका नामक गृहस्वामिनी रहती थी| वैदेहिका के बारे में लोग कहते थे वैदेहिका सुशील एवं धैर्यवान तथा शांत महिला है|

वैदेहिका की एक काली नाम की दासी थी| जो हर कार्य में निपुण और परिश्रमी थी| एक दिन दासी ने मन-ही-मन सोचा---सबकी नजरों में मेरी मालकिन सुशील, शांत महिला है| सभी मालकिन की तारीफ हमेसा करते रहते है|

मेरी मालकिन के मन में क्रोध है या नहीं मै भी तो देखूँ कहीं ऐसा तो नहीं की मालकिन में क्रोध इस लिए दिखाई नहीं देता, क्योंकि मैं अपने कार्यों में निपुण और दक्ष हूँ|

यहीं सोचकर काली ने मालकिन की परीक्षा लेने का फैसला किया|

दासी अगले दिन देर से उठी| जब वैदेहिका ने देर से उठने का कारण पूछा तो काली ने उत्तर दिया-----‘’बस यु हीं| कोई कारण नहीं|’’

वैदेहिका में क्रोध था| क्रोधित और नाराज वैदेहिका जोर से चिल्लाई

दुष्ट दासी, बिना वजह तू इतनी देर से उठी?’’ वैदेहिका में क्रोध था, लेकिन वह दिखाई नहीं देता था; क्योंकि दासी मेहनती और अपने कार्य में निपुण थी| काली ने सोचा------क्यों न पुन: परीक्षा ली जाय?’ इसलिए काली अगले दिन भी देर से उठी| जब वैदेहिका ने देर से उठने का कारण पूछा तो काली ने जवाब दिया की कोई कारण नहीं है| क्रोधित मालकिन गरज पड़ी| ‘वेवजह तुम तब नींद से उठी हो, जब सूरज सिर पर चढ़ आया है|’’

क्रोध मेरी मालकिन में मौजूद है| तब दासी ने सोचा की क्रोध मेरी स्वामिनी में मौजूद है,लेकिन दिखाई नहीं देता| तब उसने सोचा की क्यों न मै फिर परीक्षा लूँ| और दासी उस दिन भी देर से उठी वैदेहिका दासी से बोली आज तुम देर से क्यों उठी दासी आज भी वहीं जवाब दी वैदेहिका क्रोध में बेलन उठाया और काली के सिर पर मार दिया|

विनम्र और शांत महिला के रूप में लोकप्रिय वैदेहिका कि छवि ही बदल गयी|

वैदेहिका क्रूर महिला है| सिर से बहते खून के साथ काली पड़ोसियों के पास गई और बोली, ‘देखो बहनों, इस सुशील स्त्री का कारनामा| दासी के थोडा-सा देर से उठने पर कैसे उसने गुस्से में बेलन हीं दासी के सिर पर दे मारा|’’ इस घटना के पश्चात विनम्र और शांत महिला के रूप में लोकप्रिय वैदेहिका की छवि ही बदल गई और अब लोग उसके बारे में कहने लगे, ‘वैदेहिका क्रूर महिला है|

इस कहानी के बाद बुद्ध ने बताया मन पर काबू कैसे पाए

बुद्ध ने वाणी के के पाँच पक्ष बताए ‘भिक्षुओ, वाणी के पाँच पक्ष है|

इनसे ही आपको सामयिक या असामयिक, सही या गलत,कोमल या कठोर,सदभाव या दुर्भाव के रूप में पहचाना जाता है|

कुछ लोग आपको सामयिक कह सकते है, कुछ असामयिक

किसी भी परिस्थिति के लिए अपने मन को साधना होगा|

हमें संकल्प लेना होगा की हमारे मन पर किसी भी परिस्थिति का प्रभाव नहीं पड़ेगा|

हम अपशब्द नहीं कहेगें| हम सबकी मंगल कामना करेगें, सदभाव बनाए रखेगें|

हम जागरूक होकर शुभ मार्ग पर चलते रहेगें| हम विश्व में दवेष व् वैमनस्य से मुक्त होकर, दुर्भावना से मुक्त होकर सदभाव बनाए रखेगें

‘मान लो, कोई आपके पास कुदाली और टोकरी उठाए आता है और कहता है, ‘मै इस विशाल पृथ्वी को मिटा दूँगा|’वह यहाँ-वहाँ खोदता है, मिटटी फैलता है, गंदगी फैलाता है और कहता है, ‘तुम बिना धरती के हो जाओ|’ तुम्हारे विचार में, क्या वह पृथ्वी को नष्ट कर देगा?’’

‘नहीं भगवन यह संभव नहीं है| पृथ्वी गहरी और असीम है| इसे खत्म करना आसान नहीं है| उस व्यक्ति को मात्र हताशा ही मिलेगी|’’

‘इसी तरह से, भिक्षुओ, तुम्हारा मन भी अप्रभावित होना चाहिए| हमें जवाब में अपशब्द नहीं कहने हैं| तुम उस व्यक्ति के कल्याण की कामना करोगे| इस तरह से आप अपने मन पर काबू पाएँगें|’’

भिक्षुओं आप का मन शांत और शुद्ध रहना चाहिए | आपकी वाणी से अपशब्द नहीं निकलने चाहिए आप नदी के समान शीतल और शांत रहेगें|’’      

बहुत से लोग वैदेहिका की तरह होते है| अगर वे अपने परिवेश से संतुष्ट है तो दयालु है, विनम्र है, लेकिन सवाल यह है कि परिस्थियाँ बदल जाने पर भी वे ऐसे ही रहेगें| यह तभी हो सकता है, जब व्यक्ति का मन शुद्ध और शांत बना रहता है| कटु वचन सुनने पर भी वह दुर्भाव दर्शाए बिना सन्मार्ग पर चलता रहता है| तभी वह व्यक्ति सचमुच सज्जन बन पाएगा| चाहें कोई कुछ भी करना चाहें, आप कटु शब्द नहीं बोलेगें| आपका मन शुद्ध रहना चाहियें| सर्व-मंगल की कामना से परिपूर्ण, मंगल घट-सा |’’

Comments

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