भगवान शंकर की माया neelam.info



 शिशु के श्वाँस से खींचे हुए मार्कण्डेय ऋषि शिशु के नाशिका के छिद्र से शिशु के उदर में चले गये

मार्कण्डेय ऋषि के तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रगट होकर बोले पुत्र वरदान मांगों   मार्कण्डेय जी निवेदन करके बोले हे प्रभो आपके श्री चरणों का दर्शन हो जाय, आपको पा लेने पर फिर तो पाना शेष रह ही नहीं जाता, 

प्रभु मुझे आपकी माया देखनी है भगवान शिव एवमस्त कहकर अंतर्ध्यान हो गये

मार्कण्डेय ऋषि शिवजी की आराधना ध्यान तथा पूजन में लग गये एक दिन ऋषि ने देखा दिशाओं को काले-काले मेघों ने ढक लिया है

बड़ी भयंकर गर्जना, बिजली की कड़क के साथ मुसल के समान मोटी-मोटी धाराओं से पानी बरसने लगा| इतने में ही चारों ओर से समुद्र बढ़ आए और समस्त पृथ्वी प्रलय के जल में डूब गयी, ऋषि उस महासागर में विक्षिप्त की भाँती तैरने लगे, भूमि वृक्ष, पर्वत आदि सब डूब चुके थे, सूर्य, चंद्रमा,तारो का भी कहीं  पता नहीं था| सब ओर घोर अंधकार था, समुद्र की बड़ी-बड़ी भयंकर तरगें कभी ऋषि को यहाँ से वहाँ फेक देती थीं कभी कोई जल-जन्तु उन्हें काटने लगता था और कभी वे जल में डूबने लगते थे, जटाएँ खुल गयी थी, बुद्दि विक्षिप्त हो गयी थी |

व्याकुल होकर ऋषि ने भगवान का स्मरण किया इतने में उन्होंने देखा सामने ही एक बहुत बड़ा वट का वृक्ष उस प्रलय सागर में खड़ा है पुरे वृक्ष पर कोमल पत्ते भरे हुए है, आश्चर्य से मुनि और समीप आ गये, ऋषि ने देखा की वटवृक्ष की इशान कोण की शाखा पर पत्तों के सट जाने से बड़ा सा सुंदर दोना बन गया है उस दोने में एक अदभुत बालक लेटा हुआ है उसके चरण लाल-लाल अत्यंत सुकुमार है उसके त्रिभुवन सुंदर मुख पर मंद-मंद मुस्कान है, बड़ें-बड़ें नेत्र प्रसन्नता से खिले हुए है स्वाँस लेने से बालक का उदर तनिक-तनिक उपर-निचे हो रहा है| उस शिशु के शरीर का तेज इस घोर अंधकार को दूर कर रहा| शिशु अपने हाथों की सुंदर उँगलियों से दाहिने चरण को पकडकर उसके अँगूठे को मुख में लिये चूस रहा है,

यह सब देखकर ऋषि को बड़ा आश्चर्य हुआ, उन्होंने प्रणाम किया—

बालक को देखते ही ऋषि की सब थकावट दूर हो गयी

ऋषि उस बालक को गोद में लेने के लिए लालायित हो उठे और उसके पास जा पहुचे, पास पहुँचे ही उस शिशु के स्वाँस से खिचे हुए ऋषि विवश होकर उसकी नाशिका के छिद्र से उसी के उदर में चले गये|

मार्कण्डेयजी ने शिशु के उदर में पहुँचकर जो कुछ देखा उसका वर्णन नहीं हो सकता, वहाँ सब जीव-जन्तु, समुद्र,नदी,सरोवर,वृक्ष,सूर्य,चंद्र,तारागण,पर्वत आदि सहित पृथ्वी भी प्राणियों से पूर्ण दिखाई दी| पृथ्वी पर घूमते हुए वे शिशु के उदर में ही हिमालय पर्वत पर पहुँचे वहाँ पुष्प महानदी और उसके तटपर अपना आश्रम भी देखा| यह सब देखने में उन्हें अनेक युग बीत गये, वे विस्मय से चकित हो गये, और अपने नेत्र बंद कर लिए

उसी समय उस शिशु के स्वाँस छोड़ने से स्वाँस के साथ ही वे फिर बाहर उसी प्रलय-समुद्र में गिर पड़ें फिर उन्हें वहीं दृश्य,वही वटवृक्ष और वही सौन्दर्य शिशु दिखाई पड़ा| ऋषि उस बालक से ही इस सब दृश्य का रहस्य पूछना चाहा| जैसे ही ऋषि कुछ पूछने को हुए सब अदृश्य हो गया| ऋषि ने देखा की वे तो अपने आश्रम के पास पुष्पभद्रा नदी के तट पर सन्ध्या करने वैसे ही बैठे है, वह शिशु वह वटवृक्ष,वह प्रलय आदि कुछ भी वहाँ नहीं है, भगवान की कृपा समझकर ऋषि को बड़ा ही आनन्द हुआ|

शिवजी ने कृपा करके अपनी माया का स्वरूप दिखलाया मार्कण्डेय ऋषि को

किस प्रकार उन्हीं से सृष्टि का विस्तार होता है और फिर सृष्टि उन्हीं में लय हो जाती है, भगवान शंकर की कृपा का अनुभव करके मार्कण्डेय जी ध्यानस्थ है?

मार्कण्डेय जी को ध्यान में एकाग्र देख माँ पार्वती शिवजी से बोली

ये ऋषि कितने तपस्वी है, कैसे ध्यानस्थ हैं? आप इन पर कृपा कीजिये भगवान शंकर पार्वती से बोले ये मार्कण्डेय जी है ऐसे भक्त कामना रहित होते हैं| भगवान शंकर ऋषि के समीप गये, किन्तु ध्यानस्थ ऋषि को कुछ पता न लगा, वे तो भगवान के ध्यान में शरीर और संसार को भूल गये थे, शंकर जी ने योगबल से उनके हृदय में प्रवेश किया, हृदय में, त्रिनयन, कर्पुरगौरं शिवजी का दर्शन होने से ऋषि का ध्यान भंग हो गया| शिवजी को आया देख वे बड़े प्रसन्न हुए उन्होंने माँ पार्वती के साथ शिवजी का पूजन किया शिवजी ऋषि को वरदान मागनें को कहा ऋषि बोले हे भगवन आपके नाम में

मेरी स्थिर श्रद्दा रहे|

शंकर जी मार्कण्डेय ऋषि को कल्पान्त तक अमर रहने और पुराणाचार्य होने का वरदान दिया    

Comments

  1. मार्कण्डेय जी को ध्यान में एकाग्र देख माँ पार्वती शिवजी से बोली . उत्तम शिव दर्शन

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  2. बालक को देखते ही ऋषि की सब थकावट दूर हो गयी
    .....सर्वसमूह संस्था

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  67. अपमान एवं घृणा बुरा फल देता है शारीरिक एवं मानसिक विकार पैदा करता है। समयानुसार उचित कर्म,धर्म एवम उचित पूजन करना चाहिए। किसी के साथ घृणा भाव नहीं व्यक्त करना चाहिए.... कुष्ठ सेवा आश्रम चौकियां धाम

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  68. उत्तम लेख। गंगा को स्वच्छ रखें एवं पूजन करना चाहिए। श्रवण मास में उचित दिन गंगा स्नान करना चाहिए। ..….गंगा सेवा समिति विंध्याचल

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