महर्षि दुर्वासा के ललाट से भष्म के गिरने से कुंभीपाक नरक स्वर्ग कैसे हो गया
महर्षि
दुर्वासा कुंड की ओर निचा सिर करके देख रहे थे उनके ललाट से भष्म के कुछ कण कुंड
में गिर पड़े थे
महर्षि
दुर्वासा के क्रोध से देव दानव दोनों डरते है| दुर्वासा ऋषि के शाप से सभी भयभीत
रहते है इनका क्रोध भी प्राणियों के लिए कल्याणकारी ही हुआ है| दुर्वासा ऋषि ने
जिन-जिन को शाप दिया उनका भला ही हुआ।ये शिव के रुद्रावतार थे।दुर्वासा ऋषि भगवान शंकर के अंश से उत्पन्न हुए थे वे
जहाँ कहीं जाते,थे लोग देवता की तरह उनका आदर करते थे| दुर्वासा ऋषि अत्री मुनि और अनुसूया के
पुत्र है। महर्षि दुर्वासा भगवान शंकर के बहुत बड़े भक्त है| एक बार ऋषि समस्त
भूमंडल का भ्रमण करते हुए पितृलोक में जा पहुचें | वे सर्वांग में भष्म रमाये एवं
रुद्राक्ष
धारण किये हुए और हाँथ में कमंडल और त्रिशूल लिए हुए और हृदय में भगवती पार्वती का ध्यान और मुख से जय पार्वती का उच्चारण करते हुए महर्षि दुर्वासा ने अपने पितरों का दर्शन किया| उसी समय ऋषि के कानो में करुण-रुदन सुनाई पड़ा, हाहाकारमय भीषण रोने की आवाज को सुन कर ऋषि कुंभीपाक नरक को देखने के लिए चल दिए। वहाँ पहुँच कर ऋषि वहाँ के कर्मचारियों से पूछे रक्षको, यह करुण रोने की आवाज किसका है।
ये इतनी
यातना क्यों सह रहें हैं, इनके हृदय में अपार दर्द क्यों हो रहा हैं?
हे ऋषिवर यह
संयमनी पूरी का कुंभीपाक नामक नरक है| यहाँ वे ही
लोग आकर कष्ट भोगते हैं जो शिव,विष्णु,देवी,सूर्य तथा गणेश के निंदक है और
जो वेद पुराण की निंदा करते है, ब्राम्हणों के द्रोही है और माता-पिता गुरु तथा
श्रेष्ठजनों का अनादर करते हैं जो धर्म के
निंदक हैं वे
यहाँ घोर कष्ट पाते है ये उन्हीं के दर्दभरी रोने की आवाज और करुण रुदन आपको सुनाई
दे रहा हैं|
यह सुनकर ऋषि
दुर्वासा बहुत दू:खी हुए और कुंभीपाक नरक
को देखने के लिए कुंड के पास गये समीप जाकर ज्यों ही ऋषि सिर निचा करके कुंभीपाक
नरक को देखने लगें त्यों-त्यों ही वह
कुंभीपाक कुंड स्वर्ग के समान सुंदर हो गया, यह आश्चर्य वहाँ हुआ, वहाँ के पापी जीव
एकाएक प्रसन्न हो उठे और दुखों से मुक्त होकर और प्रसन्न होकर बात चित करने लगें
और मन में बहुत सूख का अनुभव करने लगे उस
समय आकाश से पुष्प वर्षा होने लगी यह सब देखकर यमदूत चकित हो गये यमदूत धर्मराज के पास गये और बोले धर्मराज कुंभीपाक का दृश्य देखकर चकित हो गये
आश्चर्य की बात है की सभी पापियों को इस समय अपार सूख मिल गया है दूतों की बात सुनते ही धर्मराज स्वयं वहाँ गये वहाँ का दृश्य देखकर बहुत चकित हुए धर्मराज देवताओं से बोले ये सब कैसे हो गया सभी देवता बोले इस अचरज का मूल कारण हम सब भी नहीं बता सकते धर्मराज बहुत चिंतित हुए और सोचने लगे नरक स्वर्ग कैसे हो गया। धर्मराज ब्रम्हा विष्णु की सहायता से भगवान शंकर के पास गये| पार्वती के साथ विराजमान भगवान शंकर का दर्शन करके प्रणाम किया धर्मराज शिवजी से निवेदन करके बोले हे प्रभु कुंभीपाक का कुंड एकाएक स्वर्ग के समान हो गया, इस आश्चर्य को देखकर हम आपके पास आए है। प्रभो आप सर्वग्य है, हम लोगों के संदेह को आप मिटाने की कृपा करें यही जानने के लिए हम आपकी सेवा में आए है
भगवान शंकर हँसते हुए बोले महर्षि दुर्वासा के ललाट से भष्म के कुछ कण गिर पड़े थे अन्तर्यामी शिवजी हँसते हुए बोले---
देवगणों
इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है यह विभूति----भष्म का कमाल हैं मेरे परम भक्त
दुर्वासा ऋषि कुम्भीपाक नरक को देखने गये थे, तो वहाँ वे पापियों के करुण रुदन
सुनकर व्याकुल हो गये भक्त दुर्वासा ऋषि जब उस कुंड की ओर निचा सिर करके देख रहें
थें, तो उसी समय हवा का एक झोका आया उसी समय दुर्वासा के ललाट से भष्म के कुछ कण
उस कुम्भीपाक कुंड में गिर पड़ें थे, भष्म के प्रभाव से यह आश्चर्य हुआ है इसी कारण
वह नरक स्वर्ग के समान हो गया यह चमत्कार ऋषि दुर्वासा की शिव भक्ति तथा उनके माथे
पर विराजमान शिवविभूति का ही फल था भगवान शंकर की बात सुनकर धर्मराज सहित सभी
देवगण अत्यंत प्रसन्न हुए उसी समय उन्होंने उस कुंड के समीप शिवलिंग तथा देवी पार्वती
की स्थापना की और वहाँ के पापियों को मुक्त कर दिया तभी से पितृलोक में उस मूर्ति
के दर्शन पूजन करके पितृलोक शिवधाम (मोक्ष) प्राप्त करने लगे |
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