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भगवान बुद्ध के विचार - हम जागरूक होकर शुभ मार्ग पर चलते रहेगें neelam.info

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चतुर दासी अपनी मालकिन के धैर्य की परीक्षा लेती है| श्रावस्ती में वैदेहिका नामक गृहस्वामिनी रहती थी| वैदेहिका के बारे में लोग कहते थे वैदेहिका सुशील एवं धैर्यवान तथा शांत महिला है| वैदेहिका की एक काली नाम की दासी थी| जो हर कार्य में निपुण और परिश्रमी थी| एक दिन दासी ने मन-ही-मन सोचा---सबकी नजरों में मेरी मालकिन सुशील, शांत महिला है| सभी मालकिन की तारीफ हमेसा करते रहते है| मेरी मालकिन के मन में क्रोध है या नहीं मै भी तो देखूँ कहीं ऐसा तो नहीं की मालकिन में क्रोध इस लिए दिखाई नहीं देता, क्योंकि मैं अपने कार्यों में निपुण और दक्ष हूँ| यहीं सोचकर काली ने मालकिन की परीक्षा लेने का फैसला किया| दासी अगले दिन देर से उठी| जब वैदेहिका ने देर से उठने का कारण पूछा तो काली ने उत्तर दिया-----‘’बस यु हीं| कोई कारण नहीं|’’ वैदेहिका में क्रोध था| क्रोधित और नाराज वैदेहिका जोर से चिल्लाई दुष्ट दासी, बिना वजह तू इतनी देर से उठी?’’ वैदेहिका में क्रोध था, लेकिन वह दिखाई नहीं देता था; क्योंकि दासी मेहनती और अपने कार्य में निपुण थी| काली ने सोचा------क्यों न पुन: परीक्षा ली जाय?’ इसलिए काली अगले

कामदेव को हिंदू शास्त्रों में प्रेम और काम का देवता माना गया है| neelam.info

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  कामदेव को हिंदू शास्त्रों में प्रेम और काम का देवता माना गया है| कामदेव का धनुष प्रकृति के सबसे ज्यादा मजबूत साधनों में से एक है| वसंत कामदेव का मित्र है, इस लिए कामदेव का धनुष फूलों का बना हुआ है| इस धनुष की कमान स्वर-विहीन होती है| कामदेव के धनुष की कमान स्वर-विहीन होती है| यानि कामदेव जब कमान से तीर छोड़ते हैं तो उसकी आवाज नहीं होती| इसका मतलब यह अर्थ भी समझा जाता है की काम में शालीनता जरूरी है| यह मनुष्य को कर्म करने की प्रेरणा देता है यह मनुष्य को मुक्ति का मार्ग बताता है| यानि काम न सिर्फ सृष्टि के निर्माण के लिए जरूरी है, बल्कि मनुष्य को कर्म का मार्ग बताने और अंत में मोक्ष प्रदान करने का रास्ता सुझाता है|   तीर कामदेव का सबसे महत्वपूर्ण शस्त्र हैं| कामदेव का तीर जब किसी को बेधता है, उसके पहले न तो आवाज करता है और न ही शिकार को सँभलने का मौका देता है| कामदेव के धनुष का लक्ष्य विपरीत लिंगी आकर्षण से बँधकर पूरी सृष्टि संचालित होती है| कामदेव का रूप इतना बलशाली है की इसकी सुरक्षा नहीं की गई तो उपद्रव ला सकता है इसलिए यह कवच कामदेव की सुरक्षा से निबद्द है| यानि सुरक्षित का

वेदों की उत्पत्ति neelam.info

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वेदों की उत्पत्ति    ब्रम्हाजी ने सृष्टि-रचना के समय देवताओं और मनुष्यों के साथ-साथ कुछ असुरों की भी रचना कर दी | असुरों  में देवताओं के विपरीत आसुरी गुणों का समावेश था, असुर स्वभाव से अत्यंत क्रूर,अत्याचारी और अधर्मी हो गये| ब्रम्हाजी ने देवताओं के लिए स्वर्गलोक और मनुष्यों के लिए पृथ्वीलोक की स्थापना की| ब्रम्हाजी को जब असुरों की आसुरी शक्तियों का ज्ञान हुआ तो ब्रम्हाजी ने असुरों को पाताललोक में निवास करने को भेज दिया| देवताओं की शक्ति का आधार भक्ति,सात्विकता और धर्म था,किन्तु स्वर्ग के भोग विलास में डूबकर वे इसे भूल गए,इस कारण देवताओं की शक्ति क्षीण होती गई| असुर भगवान   शंकर को प्रसन्न करके अनेक वरदान प्राप्त कर लिए असुरों की आसुरी शक्तियों में वृद्धि होती गयी और वे पृथ्वीलोक पर आकर मनुष्यों पर अत्याचार करने लगे असुरों ने स्वर्ग पर भी आक्रमण कर के स्वर्ग को भी अपने अधिकार में कर लिए देवताओं की करुण पुकार सुनकर शिवजी बोले, हे देवताओ तुम्हारी शक्तियाँ भोग विलास और ऐश्वर के कारण क्षीण हो गयी है,और असुर अपने तप के बल से बलशाली हो गये है तुम्हारी रक्षा अब केवल माता गायत्री ही कर

माँ गायत्री पाँच मुखोंवाली देवी हैं

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  हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार माता गायत्री की उत्पति की कथा एक बार परब्रम्हास्वरूपा माता गायत्री ने सोचा की चारों ओर   अंधकार-ही-अंधकार है| न सूर्य दिखाई देता है और न ही चंद्रमा,न दिन होता है न ही रात इससे उनके मन में सृष्टि का निर्माण करने का विचार उत्पन्न हुआ | इसके लिए उन्होंने सर्वप्रथम भगवान शंकर की पार्थना की |फलत: भगवान शिव के बाएँ अंश से श्रीविष्णुजी का उदभव हुआ| माता गायत्री के प्रभाव से ही श्रीविष्णुजी सैकड़ों वर्षों की योगनिद्रा में लीन हो गये| इससे उनके नेत्रों का समस्त तेज उनकी नाभि में एकत्रित होकर एक कमल के रूप में उत्पन्न हुआ| इस कमल का मुख कई वर्षो तक बंद रहा| धीरे-धीरे इस कमल का मुख खुलता गया, जिसमें एक दिव्य तेज प्रगट हुआ माता गायत्री की कृपा से इसी दिव्य तेज से ब्रम्हाजी का जन्म हुआ जन्म लेने के बाद ही ब्रम्हाजी कठोर तप करने लगे जब श्रीविष्णुजी योगनिद्रा से जाग्रत हुए तो उन्हें ब्रम्हाजी के अस्तित्व का ज्ञान हुआ माता गायत्री की कृपा से उन दोनों के मध्य वाद विवाद उत्पन्न हो गया यह-वाद विवाद इतना बढ़ गया कि विष्णुजी ब्रम्हाजी को मारने के लिए दौड़े तभी वहाँ शिवजी

धार्मिक और वैदिक शास्त्रों के अनुसार माता गायत्री को तीन स्वरूपों वाली देवी माना जाता है

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धार्मिक और वैदिक शात्रों के अनुसार माता गायत्री को तीन स्वरूपों वाली देवी माना जाता है| प्रात:काल गायत्री के जिस रूप की आराधना की जाती है, वह इनकी कुमारी अवस्था है| माता गायत्री के इस रूप का परिचय ऋग्वेद से प्राप्त होता है| सूर्यमंडल के मध्य में विराजमान यह देवी गायत्री लाल वर्ण की हैं, जो अपने दोनों हाथों में अक्षसूत्र और कमंडलू धारण करती हैं| इनका वाहन हंस हैं| माता गायत्री का यही स्वरूप ब्रम्हाशक्ति के रूप में प्रसिद्ध हैं| मध्याहन काल में माँ गायत्री के युवा स्वरूप का आराधना की जाती है| इस रूप में देवी के तीन नेत्र और चार हाथ हैं| इनमें क्रमश: शंख,चक्र,गदा और पंकज सुशोभित हैं| इनका वाहन गरुण है| देवी के इस स्वरूप को सावित्री भी कहते हैं| माँ गायत्री के इस स्वरूप का परिचय यजुर्वेद में मिलता है| संध्याकाल में माँ गायत्री के वृद्धा स्वरूप की उपासना की जाती है| माँ का यह स्वरूप तीव्र शक्ति का परिचायक है| इस स्वरूप में देवी ने अपने चारों हाथों में त्रिशूल,डमरू,पास और पात्र धारण किये हैं| इनका वाहन वृषभ है| देवी के इस स्वरूप का परिचय सामवेद से प्राप्त होता है| पूजा अर्चना माँ

महिषासुर मर्दिनी (neelam.info)

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  महिषासुर का जन्म कैसे हुआ महाप्रतापी दैत्य दनु के दो पुत्र थे जिनका नाम था रंभ और करंभ जो बहुत ही शक्तिशाली थे रंभ और करंभ का विवाह हो चूका था | लेकिन वे दोनों संतानहीन थे| इसलिए पुत्र पाने के लिए उन्होनें कठोर तपस्या करने के लिए चल पड़े दैत्य करंभ जल में डूबकर कठीन तपस्या करने लगा और रंभ ने एक वट वृक्ष के नीचे अग्नि के सामने साधना आरंभ कर दी| इंद्र को उनकी तपस्या के बारे में पता चला तो वे बहुत चिंतित हुए| उन दैत्यों की तपस्या भंग करने के विचार से देवराज इंद्र करंभ के समीप प्रगट हुए| फिर उन्होनें मगरमच्छ का रूप धारण करके जल में प्रवेश किया और करंभ के पैर पकड़ लिये| इंद्र की मजबूत पकड़ से वह छुट नहीं पाया और उसकी मृत्यु हो गयी| करंभ की मृत्यु से रंभ दू:खी हो गया| उसने तलवार निकालकर अपना सिर अग्निदेव को समर्पित करने का निश्चय कर   लिया| तभी अग्निदेव प्रगट हो गये और बोले,हे दैत्य रंभ यह तुम कैसी मुर्खता करने जा रहे हो तुम इच्छित वर माँगों| मै तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करूँगा| अग्निदेव के समझाने पर रंभ ने आत्महत्या का विचार त्याग दिया और पार्थना करते हुए बोला, ‘हे अग्निदेव   यदि आप प्र